नाचेंगे भूत, चढ़ेगी बली, आस्था और अंधविश्वास की कसौटी पर ताल खमरा मेले का आयोजन आज देव उठनी ग्यारस से
प्रशासनिक तौर पर मेले को नहीं है मान्यता, किंतु प्रशासन करता है व्यवस्था
मालन माई की होती है पूजा, बकरे और मुर्गे की चढ़ती है बलि
मनेश साहू संपादक छिंदवाड़ा ------ जुन्नारदेव विकासखंड नगर मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर नवेगांव ग्राम पंचायत के तालखमरा गांव में लगने वाला भूतों का सुप्रसिद्ध मेला देव उठनी ग्यारस के बाद से प्रारंभ होगा। मेले में लाखों श्रद्धालु आस्थावश माता मालन माई की पूजा अर्चना करने इस मेले में पहुंचेंगे। समूचे विधानसभा क्षेत्र के अतिरिक्त जिला प्रदेश और देश के अलग-अलग कोनों से भी श्रद्धालु इस मेले में पूजन अर्चन करने के लिए पहुंचते हैं। गौरतलब हो कि यह मेला प्रशासनिक तौर पर रजिस्टर्ड नहीं है और न ही वैध है इसके बाद भी विगत सैकड़ों वर्षो से चले आ रहे इस मेले में प्रशासन द्वारा संपूर्ण व्यवस्थाएं की जाती है। इस मेले में पार्किंग से लेकर दुकानों तक का शुल्क प्रशासन द्वारा निर्धारित किया जाता है साथ ही ग्राम पंचायत भी शुल्क की वसूली करती है। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए उचित व्यवस्थाएं भी मंदिर समिति और ग्राम पंचायत के अतिरिक्त स्थानीय प्रशासन द्वारा बनाई जाती है। यह मेला भूतों के मेले के नाम से देश भर में सुप्रसिद्ध है।
ओझा पड़िहार प्रेत बाधाओं को करते हैं वश में -----ताल खमरा के इस सुप्रसिद्ध भूतों के मेले में अनेकों प्रेत बाधाओं से ग्रसित व्यक्ति सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर मेले में पहुंते है, जहां पर ओझा पड़िहार तंत्र-मंत्र के द्वारा इन भूतों को भगाने के लिए प्रेत बाधा से ग्रसित व्यक्ति को अनेकों यात्नाएं देते है, वहीं भूत प्रेत को शरीर छोड़ने के लिए मुर्गे और बकरे की बली भी दी जाती है। प्रेत बाधा से ग्रसित व्यक्ति को जहां सैकड़ों वर्ष पुराने बटवृक्ष से धागों के माध्यम से बांधकर खील ठोकी जाती है वहीं प्रेत को इस खील के माध्यम से खापा जाता है। प्रेत बाधा जल्द शांत न होने पर तांत्रितक ओझाओं द्वारा पीड़ित व्यक्तियों को अनेकों यात्नाएं दी जाती है, वहीं मूक जानवरों की हजारों की संख्या में बली इस मेले में दी जाती है।
आस्था या फिर अंधविश्वास होता है हावी ----- विकासखंड में लगने वाला यह सबसे बड़ा मेला माना जा सकता है और सिर्फ इसी स्थान को लेकर यह कहा जाता है कि इस मेले में भूत प्रेत पीड़ा से ग्रसित व्यक्ति को ठीक किया जा सकता है। ऐसे में 21वीं सदी के इस आधुनिक युग को देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की इस तरह के मेले में प्रेत बाधा को मानना या फिर उसे मानकर व्यक्ति को यात्नाएं देना आस्था है या फिर अंधविश्वास ही है वहीं आज जब मानव चन्द्रमा, मंगल तक पहुंच रहा है ऐसे में भूत प्रेत की बात कितनी सच्ची है यह भी समझ से परे है, फिलहाल इस मेले को देखकर यह स्पष्ट दिखता है कि आज भी ग्रामीण और आदिवासी अंचलों में आस्था और अंधविश्वास पूर्णतः कायम है। अज्ञानता और अंधविश्वास के फेर में लोग मेले में पहुंचकर अपनों को ही यात्नाएं दिलाते देखे जा सकते है।
मालन माई की होती है पूजा अर्चना ----- यह मेला इस आदिवासी अंचल में सैकड़ों वर्षो से लगता आ रहा है वहीं विगत 6-7 वर्ष पूर्व मालन माई माता का मंदिर बांसो के झुंड के बीच था जहां पर लोग अपने विश्वास और आस्था के साथ पूजन अर्चन करने जाते थे। मंदिर पर पूर्ण आस्था रखने वाले रामनाथ पण्डोले ने बताया कि जब माता का मंदिर निर्माण किया जा रहा था तब माता खुले वातावरण में रहना चाहती थी, इसलिए समिति द्वारा मंदिर नहीं बन पा रहा था। मंदिर समिति के आदिवासी भाईयों द्वारा माता को पूजन-अर्चन, हवन कर मनाया गया तब माता का भव्य मंदिर का निर्माण अब पूर्ण हो गया है। माता ने कई चमत्कार भी ग्रामीणों को दिखाये है इसके साथ साथ अनेकों प्रेत बाधाएं भी इस स्थान पर आकर शांत हो जाती है।
तालाब के जल का होता है विशेष महत्व ---- ताल खमरा जैसा की नाम में ही ताल है और इस ताल के जल का भी विशेष महत्व है। इस ताल खमरा के तालाब के पानी से स्नान करने के बाद ही प्रेत बाधा व्यक्ति के शरीर को छोड़ती है। ओझा पड़िहार प्रेत आत्मा को तंत्र मंत्र के माध्यम से पेड़ों में कीलो के माध्यम से कैद कर लेते है, वहीं व्यक्ति को शुद्ध करने के लिए उसे ताल खमरा के तालाब में स्नान कराया जाता है, फिर प्रेतबाधा से ग्रसित व्यक्ति पूरी तरह ठीक हो जाता है।
मेले के बाद गंदगी का लगता है अम्बार ----- इस मेले के बाद जहां लाखो श्रद्धालु मेले में अंधविश्वास वश प्रेत बाधा शांत कराने आते है वहीं प्राचीन मान्यतानुसार प्रेतबाधा निकलने के बाद उनके वस्त्र आदि को तालाब के किनारे ही फेंक दिया जाता है वहीं पशु बली के बाद लोग उनके अवशेषो को भी तालाब के इर्द गिर्द ही फेंक देते है जिससे समूचे मेला परिसर सहित ग्रामीण अंचल में गंदगी और सड़ांघ का वातावरण निर्मित हो जाता है। मेले में उचित सफाई व्यवस्था न होने के कारण प्रतिवर्ष गंदगी स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है जहां पर स्वच्छता अभियान की खुली पोल भी खुलती दिखाई देती है।

