खचाखच भरा रहता है रिजर्वेशन का डब्बा
बाथरूम संडास भी नहीं जा पाते सीट नंबर लिखे यात्री
रेलवे अपनी भूल पर कुछ अच्छे विचार करेंगे क्या
पर्याप्त राशि खर्च करने के बाद ही रिजर्वेशन डिब्बे में यात्रियों के भारी बुरे हाल है लोकल डिब्बों की तरह रिजर्वेशन का डिब्बा भी खचाखच भरा रहता है स्थिति यह रहती है कि इस रिजर्वेशन डिब्बे एक तिल भी पैर रखने की जगह नहीं है वह रात्रि जो सीट पाने दो-तीन माह पूर्व टिकट कराते हैं या तत्काल में टिकट ले जो सीट नंबर प्राप्त कर लेते हैं तो एक बार जो सीट पर बैठते हैं तो भीड़ अधिक होने के चलते बाथरूम संडास तक नहीं जा पाते हैं जिसके लिए रेलवे पूर्ण रूप से दोषी है क्या अपनी इस भूल पर कुछ अच्छे विचार करेगी
सनद रहे कि प्रतिदिन देश में निवासरत लोग अपने अपने पसंदीदा वाहन से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं जिससे आसपास की बात हो या फिर 100 200 किलोमीटर की बात तो लोग टू व्हीलर फोर व्हीलर का उपयोग कर यात्रा कर लेते हैं किंतु 500 किलोमीटर हो या 1000 किलोमीटर उत्तर में रेलवे का सफर सही एवं आसान रहता है
लोक कराते हैं रिजर्वेशन
जिन्हें आगामी दिनों में 500 1000 किलोमीटर जब यात्रा करना रहता है तो ऐसे लोग अधिक रुपया खर्चा कर रिजर्वेशन करा लेते हैं ताकि सीट नंबर मिल जाए एवं सफर आसानी से कट जाए
तत्काल में लेते हैं रिजर्वेशन टिकट
प्रतिदिन कुछ ऐसे लोग कोई भी होते हैं जिन्हें 500 1000 या इससे ज्यादा किलोमीटर की यात्रा करना रहता है तो सीट नंबर मिल जाए ताकि तत्काल में टिकट लेते हैं जबकि इसमें किराया 3 गुना लगता है लोग अधिक राशि खर्च करने में भी डरते नहीं सिर्फ उद्देश्य की सफर आसानी से कट जाए
लोकल डिब्बे से बुरे हाल है रिजर्वेशन डिब्बों के
आज देश में आबादी न्यूनतम चरण पर है किंतु इस यात्रा अनुपात के तहत डिब्बों की व्यवस्था नहीं है कुछ रिजर्वेशन की टिकट ले तो जनरल डिब्बो की टिकट लेस सभी इन्हीं रिजर्वेशन डिब्बों में घुस जाते हैं जिससे डिब्बा खचाखच भर जाता है
बाथरूम संडास नहीं जा पाते यात्री
जब डिब्बा खचाखच भर जाता है तो वह यात्री जो 2 गुना राशि खर्च कर रिजर्वेशन एवं तीन गुणा राशि खर्च कर तत्काल की टिकट प्राप्त कर लेते हैं उन्हें कितना दुख होता होगा कि जब उनके परिवार के सदस्य बाथरूम संडास तक नहीं पहुंच पाते हैं
रेलवे को इससे कोई से कोई लेना-देना नहीं
चाहे रिजर्वेशन डिब्बा हो या जनरल का डिब्बा इसमें कितने यात्रियों के बैठने की सुविधा है उतनी ही टिकट वितरण करें बाद में सख़्ती के साथ टिकट देना ही बंद कर दे तो इस प्रकार की स्थिति ही उत्पन्न नहीं होती है किंतु रेलवे ऐसा करता नहीं है मात्र अधिकाधिक मुनाफे के लालच में टिकट बिक्री करते रहता है जिससे यात्रियों के सामने यह भयानक- भयावह स्थिति उत्पन्न होती है
मुनाफा छोड़ यात्रियों के लिए भी कुछ सोचे रेलवे
अभी तो लोग इन बातों से अनभिज्ञ है जैसे जैसे लोग जाएंगे रेलवे के लिए एक सिरदर्द बनता जाएगा भविष्य में क्या हो जाएगा इन बातों से अज्ञान है सर्वप्रथम रेलवे मुनाफा छोड़ो एवं यात्रियों के सुख सुविधा पर भी ध्यान दे नहीं तो परिणाम बुरे हो सकते हैं



