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बैठक में बताया गया कि न्यायालयों में अनुसूचित जाति के 463 में से 67 और अनुसूचित जनजाति के 490 में से 69 प्रकरणों का निराकरण कराया जा चुका है । इसी प्रकार पॉक्सो एक्ट न्यायालय में अनुसूचित जाति के 34 में से 28 और अनुसूचित जनजाति के 66 में से 57 प्रकरणों का निराकरण कराया जा चुका है । बैठक में बताया गया कि एक मार्च से 31 अगस्त 2022 तक अनूसूचित जाति व जनजाति के 96 पंजीबध्द प्रकरणों में से 67 प्रकरणों में चालान प्रस्तुत किये जा चुके है और 27 प्रकरणों में विवेचना जारी है जिसमें से 15 प्रकरण जाति प्रमाण पत्र के अभाव में लंबित है । बैठक में जाति प्रमाण पत्र के अभाव में लंबित प्रकरणों में उत्पीड़ितों की सूची तत्काल जनजातीय कार्य विभाग को प्रस्तुत करने और शेष प्रकरणों में शीघ्र विवेचना पूर्ण कर चालान प्रस्तुत करने की कार्यवाही करने के निर्देश थाना प्रभारी अजाक को दिये गये ।
बैठक में बताया गया कि न्यायालय के माध्यम से अनुसूचित जाति के 28 प्रकरणों में 5400 रूपये और जनजाति के 32 प्रकरणों में 6695 रूपये का यात्रा भत्ता एवं थाना अजाक के माध्यम से अनुसूचित जाति के 43 प्रकरणों में 12428 रूपये और अनुसूचित जनजाति के 49 प्रकरणों में 12301 रूपये की राशि यात्रा भत्ता, भरण-पोषण, आहार व मजदूरी के रूप में वितरित की गई । इसी प्रकार अनुसूचित जाति के 28 प्रकरणों में 27.50 लाख रूपये और अनुसूचित जनजाति के 53 प्रकरणों में 96 लाख रूपये की राहत राशि स्वीकृत की जाकर उत्पीड़ितों के खाते में पी.एफ.एम.एस.के माध्यम से अंतरित की गई तथा अन्य जिले के जाति प्रमाण पत्र होने के कारण अनुसूचित जाति के 2 प्रकरण संबंधित जिलों को स्वीकृति के लिये भेजे गये एवं वर्तमान में कोई भी प्रकरण लंबित नहीं है । बैठक में चर्चा के दौरान यह बात सामने आई कि आरोपी को आई.पी.एस.की धाराओं में सजा होती है, किन्तु अत्याचार निवारण अधिनियम की धाराओं में वे दोषमुक्त हो जाते हैं । इस पर सदस्यों ने सुझाव दिया कि न्यायालय के समक्ष उपस्थिति के पूर्व उत्पीड़ितों व गवाहों को आवश्यक तैयारी कराई जाये जिससे वे न्यायालय के समक्ष प्रकरण के संबंध में वास्तविक स्थिति रख सकें । बैठक में पंजीबध्द प्रकरणों में महिलाओं पर घटित अपराधों में उत्पीड़ित महिलाओं की गोपनीयता बनाये रखने की दृष्टि से सर्वसम्मति से यह सहमति व्यक्त की गई कि ऐसे प्रकरणों में उत्पीड़ित महिलाओं का नाम उजागर नहीं किया जाये । सदस्यों द्वारा न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के पूर्व उत्पीड़ितों में आपसी सहमति (राजीनामा) के कारण प्रकरण खारिज होने अथवा आरोपियों की रिहाई होने वाले प्रकरणों पर भी गंभीरतापूर्वक कार्यवाही किये जाने के लिये कहा गया ।


