
शरद पूर्णिमा को आसमान से होगी अमृत वर्षा
जुन्नारदेव---
विकासखंड के अंतर्गत ग्राम पंचायत खैरवानी के सिंगाजी बाबा के दरबार में पुराने रीति रिवाज के अनुसार प्रति वर्ष अनुसार इस वर्ष भी शरद पूर्णिमा बड़े धमाके से मनाया जाएगा इस दिन सिंगाजी बाबा के दरबार में कई दर्जनों ग्रामीण आकर साईं बाबा के दरबार में पूजा अर्चना करते हैं सुबह से ही सिंगाजी बाबा के दरबार में जयकारा के नारे लगने शुरू हो जाते हैं और दिन भर हवन पूजन चालू रहता है एवं दुर्गा जी प्रतिमा विसर्जन के बाद 5 दिन के बाद यहां पर्व बनाया जाता है
और वैसे तो प्रत्येक मास की पूर्णिमा तिथि को धनदायक और बेहद शुभ माना जाता है इन्हीं में से एक है शरद पूर्णिमा आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहा जाता है इस बार यहां पूर्णिमा तिथि अक्टूबर को है यह पूर्णिमा तिथि धनदायक पूर्णिमा मानी जाती है मानता है कि इस दिन आकाश से अमृत वर्षा होती है और मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन से सदियों का आरंभ माना जाता है शरद पूर्णिमा का दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए सबसे खास माना जाता है इसके साथ ही इस दिन चंद्रमा पूजा भी की जाती है
*शरद पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है*
श्री संत सिंगाजी महाराज का जन्म आज से 500 वर्ष पूर्व संवत 1576 में हुआ था तथा संवत 1616 में जीवित समाधि ले ली थी एक समय संत सिंगाजी महाराज के हाथों से एक गिंडोला की हत्या हो जाती है तो संत सिंगाजी महाराज मन में बहुत पश्चाताप करते हैं बहुत दुखी होते हैं तथा उन्हें छोड़ने के लिए तत्पर हो जाते हैं उस दिन शरद पूर्णिमा दिन गुरुवार था उस दिन संत सिंगाजी महाराज ने उपवास किया एवं दे छोड़ने के लिए समाधि लगा ली परंतु जब भगवान को इस बात का पता चला तो उन्होंने सोचा कि अभी संत सिंगाजी का कार्य पृथ्वी लोक पर अधूरा है तो संत सिंगाजी महाराज को श्री नारायण ने चतुर्भुज रूप में शरद पूर्णिमा पर दर्शन दिए और संत सिंगाजी महाराज को वरदान दिया कि जब तक सूरज चांद रहेगा तब तक मैं तेरस से पूर्णिमा 3 दिनों तक तुम्हारे साथ रहूंगा और जो भी भक्त जन तुम्हारे द्वार पर आएंगे उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होगी तब से अभी तक संत सिंगाजी महाराज के निशान संत सिंगाजी समाधि पर चढ़ाए जा रहे हैं एवं भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती जा रही है
*शरद पूर्णिमा का महत्व*-पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी इस तिथि को धनदायक माना जाता है और मानता है कि इस दिन महालक्ष्मी पृथ्वी पर विचारण करने आती है जो लोग रात्रि में भोजन करते करते हुए मां लक्ष्मी का आह्वान करते हैं धन की देवी उनके घर में वास करती है शरद पूर्णिमा को रात को चंद्रमा की चांदनी सराबोर रहती है और अमृत की बरसात होती है इन्हीं मानता के आधार पर ऐसी परंपरा बनाई गई है कि रात को चंद्रमा की चांदनी में खीर रखने से उसमें अमृत समा जाता है
*इसलिए बनाई जाती है खीर*
शरद पूर्णिमा की रात को खीर चंद चांद की रोशनी में रखने के पीछे एक विज्ञानिक कारण यह भी है कि रात में चांदी के बर्तन में खीर रखने से रोग प्रतिरोधक क्षमता का विस्तार होता है
*शरद पूर्णिमा की पूजा विधि*---शरद पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करने की परंपरा है यदि ऐसा नहीं कर सकते हैं तो घर में पानी में ही गंगा जल मिलाकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाया और इसे स्थान को गंगाजल से पवित्र कर ले इसी चौकी पर अब मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें और लाल चुनरी सुनाएं इसके साथ ही धूप दीप नैवेद्य और सुपारी आदि अर्पित करें इसके बाद मां लक्ष्मी की पूजा करते हुए ध्यान करते हुए लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें उसके बाद शाम को भगवान विष्णु की पूजा करें और तुलसी पर घी का दीपक जलाएं इसके साथ ही चंद्रमा को अर्ध दे इसके बाद चावल और गाय के दूध की खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखें बाद में खीर का भोग लगाएं और प्रसाद के रूप में पूरे परिवार को खिलाएं



