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स्वतंत्रता सेनानी और स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती पर पूरे देश में 'राष्ट्रीय शिक्षा दिवस' ['नेशनल एजुकेशन डे'] के रूप में मनाया जाता है। इसी अवसर पर आज 11 नवंबर को मौलाना आज़ाद को मदरसा मोहम्मदिया में याद किया गया। इस अवसर पर मदरसा शिक्षिका सैयद यासमीन ने अपने उद्बोधन में कहा कि मौलाना आजाद ने न केवल ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी बल्कि पाकिस्तान के निर्माण का भी विरोध किया।उन्होंने बहुत कम उम्र में ही उर्दू भाषा में शायरी लिखना शुरू कर दिया था। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मौलाना हमजा ने बताया कि मौलाना अबुल कलाम आजाद ने एक पत्रकार के रूप में देश की आजादी के लिए अल हिलाल अखबार के माध्यम से लोकप्रियता हासिल की ।उन्होंने ब्रिटिश राज की आलोचनात्मक रचनाएं प्रकाशित कीं जिसके कारण ब्रिटिश सरकार ने अखबार पर पाबंदी लगा दी तथा उन्हें जेल भी जाना पड़ा।मौलाना आजाद 'खिलाफतआंदोलन' (1919-26) के नेता बने, जिसके दौरान वे महात्मा गांधी के निकट संपर्क में आए इस अवधि के दौरान, वह गांधी के अहिंसक के विचारों के समर्थक बन गए ।और 1919 रॉलेट एक्ट के विरोध में असहयोग आंदोलन को संगठित करने के लिए काम किया।मौलाना आजाद को1992 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम में मदरसा शिक्षक यासीन अंसारी, हाफिज इमरान ,रमीज राजा, हाफिज इमरान शिक्षिका आयशा ,सिद्धिकुन,शिरीन, सबा कौशर, समन कुरेशी छात्र-छात्राएं उपस्थित थे ।