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आज के युग में जहां एक ओर पैसे के लिये भाई-भाई का दुश्मन हो और बेटा-बाप के खून का प्यासा हो, सांप्रदायिक दंगों ने आपसी रशि्तों को तार-तार किया हो। वहीं दूसरी ओर एस एस कुरेशी के रिश्ते आपसी सौहार्द एवं रिश्तों की मिसाल है। अपनी सरलता सादगी और कुशल व्यवहार कुशल अध्यापन शैली विद्यार्थियों के प्रति स्नेह से विद्यार्थियों एवं लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाने वाले एसएस कुरेशी सांप्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल है। एसएस कुरैशी का जन्म 11 अक्टूबर 1960 को हुआ था जिन का पूरा नाम शेख शरीफ कुरैशी था। एसएस कुरेशी का जन्म स्थान छिंदवाड़ा विकासखंड के छोटे से ग्राम जमुनिया में हुआ था उनके पिता शेख अकबर कुरेशी सहज सरल एवं कुशल व्यवहार के व्यक्ति थे। अनघोडी ग्राम के एकीकृत शासकीय माध्यमिक शाला में पदस्थ सहायक शिक्षक श्री शेख शरीफ कुरैशी जी के सेवानिवृत्ति के अवसर पर सम्मान समारोह आयोजित किया गया। 32 वर्षो से ग्राम अनधोड़ी की शाला में अपनी सेवा देने वाले शिक्षक का छात्र छात्राओं द्वारा एवं ग्राम वासियों द्वारा सम्मान किया।श्री शेख शरीफ कुरैशी जी ने अपनी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा अपने ग्राम के ही स्कूल से सन 1975 में पूरी की उसके बाद उन्होंने आगे की पढाई के लिए ग्राम सारना में अपना दाखिला कराया और हायर सेकेंडरी की परीक्षा 1978 में उत्तीर्ण की ।उन्होंने छिंदवाडा के पीजी कालेज से स्नातक व स्नातकोत्तर की पढाई सन 1983 में पूर्ण की। अब शुरू होता है सफर जो उन्हें एक असाधारण व्यक्ति बनाता है – ग्राम अनघोड़ी के लोगों द्वारा बताया गया की श्री कुरैशी जी की प्रथम नियुक्ति दिनांक 25/08/1983 को जनपद माध्यमिक शाला पिंडरईकला में हुई। लगभग 3 वर्ष सेवा देने के बाद उनके पिता जी का इंतकाल हो गया ऐसी परिस्थिति में उनके बगेर घर पर बहुत सारी समस्या आ रही थी इसलिए उन्होंने अपना मैचुअल ट्रांसफर सन 08/07/1990 में करा लिया। अब उनके लिए ग्राम अनघोडी एकदम नया था। उसी दौरान उनके बचपन के परम मित्र और उनके सहयोगी साथी श्री रामगोपाल सूर्यवंशी जी जो की उन दिनों प्राथमिक शाला पिपरिया लालू में पदस्थ थे। उन्होंने श्री सूर्यवंशी जी से आग्रह किया की वे उनके साथ ग्राम अनघोडी चले क्योंकि उन्होंने ग्राम कभी देखा नहीं था ।श्री सूर्यवंशी जी बताते है कि रास्ता बहुत ख़राब होने व बारिश की वजह से रास्ते में बहुत कीचड़ था इसलिए दोनों ने अपने- अपने जूते चप्पल हाथ में उठाये और चल पड़े एक नया सफ़र तय करने| उस समय के ग्रामवासी बताते है कि 2 नये युवा ग्राम में आये हैं जिनमे से 1 की पद स्थापना ग्राम अनघोडी शाला में हुई है तो ग्राम के लोग यह जानकर बहुत खुश हुए लेकिन श्री कुरैशी जी बहुत परेशान थे क्योकि स्कूल लगाने के लिए यहां पर न कोई बिल्डिंग थी न ही इस प्रकार कोई घर था कि स्कूल लगाया जा सके। उन्होंने श्री कल्लू चंद्रवंशी जी के घर पर स्कूल लगाना प्रारंभ किया अधिक बारिश के कारण उन्हें वह मकान भी खाली करना पड़ा उस समय श्री भोजे चन्द्रवंशी का नया मकान बना था उन्होंने वहा स्कूल लगाना शुरू किया। धीरे-धीरे श्री कुरैशी जी का ग्राम वासियो के प्रति और ग्राम वासियों का सर के प्रति लगाव बढता चला गया कुछ समय बाद स्कूल बिल्डिंग स्वीकृत हुई और एक नई कहानी लिखना शुरू हुई।
कक्षा 5वी की परीक्षा 3 किलोमीटर दूर प्राथमिक शाला पिपरिया लालू में होती थी। जिन बच्चों के पास साधन नहीं होता था सर उन्हें अपनी साईकिल पर बिठाकर परीक्षा केंद्र तक ले जाते थे।
श्री कुरैशी जी शैक्षणिक गतिविधियों के अलावा छात्र-छात्राओं में नैतिक विकास के लिए उन्हें मार्गदर्शित करते व समझाइश भी देते। श्री कुरैशी जी कबड्डी के बहुत अच्छे खिलाड़ी थे वह बच्चों को कबड्डी भी खिलाते थे उनके सिखाए बच्चे जिला स्तर पर चयनित भी हुए लंबी -कूद ऊंची -कूद मैं भी उनके विद्यार्थी अच्छा प्रदर्शन करते थे। छात्र छात्राओं के साथ मिलकर शाला की साफ-सफाई शौचालय की साफ-सफाई आदि स्वयं भी करते थे। शाला में वृक्ष लगाना तो स्वयं गड्ढे खोदते अपने हाथों से क्यारियां बनाते व छात्र-छात्राओं को भी प्रोत्साहित करते।
सांप्रदायिक सद्भाव के साथ शाला में विभिन्न पर्व, जयंतियां, व उत्सव विद्यार्थियों के साथ पूर्ण निष्ठा के साथ आयोजित किया करते थे। श्री कुरैशी जी सेवाकाल आदर्श व निष्पक्ष छवि का रहा।
हरिओम नेमा की रिपोर्ट