"व्यंग्यकार पीड़ित मानवता की प्रतिनिधि आवाज होता है"-प्रो.मनोज पांडेय
"व्यंग्य अमर्यादित आचरण को मर्यादा की हदें सिखाता है"-प्रो.सिंह
"व्यंग्य अस्वीकार्य स्थिति का अहिंसक विरोध है"-अवधेश तिवारी
![]() |
समारोह के प्रमुख अतिथि साहित्य अकादमी का पं.माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त राष्ट्र संत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय, नागपुर के हिंदी के विभागाध्यक्ष प्रो.मनोज पांडेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि लेखक विजय कलमधार ने व्यंग्य आधारित अपनी कृति में शिल्प के विभिन्न आयामों पर उल्लेखनीय कार्य किया है। व्यंग्य विकृति के विरुध्द खामी दूर करने का शाब्दिक विरोध है। यह विद्रूपताओं का पर्दाफाश करने का साहित्यिक बिगुल है जो आक्रोश को उभारकर संघर्ष की चेतना उद्दीप्त करता है। व्यंग्य की तीक्ष्ण प्रहारात्मकता बासी पड़ी स्थितियों में बदलाव की अलख जगाता है। वक्त के साथ बढ़ती स्वार्थपूर्ति को व्यंग्य की आक्रामकता से ही नियंत्रित किया जा सकता है। व्यंग्य जनित तिलमिलाहट में अंतःसुधार की अभिप्रेरणा सन्निहित होती है। व्यंग्य पीड़ित मानवता की अन्याय, भ्रष्टाचार और शोषण के खिलाफ प्रतिनिधि आवाज होता है। व्यंग्य दिशाहीन दंभ को मर्यादित आचरण करने को विवश करता है। व्यंग्य भाषा की प्रौढता है, प्राण स्वर है और उत्कर्ष है। व्यंग्य अस्वीकार्य स्थिति का अहिंसक विरोध है। व्यंग्यकार साहित्यिक संस्कृति की सच्चाई की हदबंदी की सीमाएं तोड़ता है और संप्रेषण का सबसे सशक्त माध्यम है। कार्यक्रम अध्यक्ष शासकीय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय छिंदवाड़ा के प्राचार्य प्रो.पी.आर.चंदेलकर ने प्रो.कलमधार की रचनाधर्मिता की प्रशंसा करते हुए कहा कि कबीर से बढ़कर व्यंग्य से सीधी चोट करने वाला साहित्यकार आज तक नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि कलमधार की यह कृति व्यंग्य के क्षेत्र में शोध करने वाले अध्येताओं के लिये अत्यंत उपयोगी साबित होगी ।
समारोह में आकाशवाणी के पूर्व उद्घोषक श्री अवधेश तिवारी ने कृति के समीक्षात्मक अनुशीलन की प्रशंसा करते हुए कहा कि साहित्य संवेदना से आगे की प्रतीति होती है। जब सर्वत्र नग्नता पसरी हो तो व्यंग्यकार का दायित्व और बढ़ जाता है। पाठक के
हृदय को संतोष से भरना ही लेखक के लेखन की असली कसौटी होती है। व्यंग्य अस्वीकार्य स्थिति का अहिंसक विरोध है। शासकीय उपाधि महाविद्यालय चांद के प्राचार्य एवं प्रेरक प्रो.अमर सिंह ने विजय कलमधार को छिंदवाड़ा की सौंधी माटी के सृजन का उभरता हुआ युवा सितारा करार देते हुए समालोचनात्मक अंदाज में कहा कि कलमधार की कृति यह बताती है कि व्यंग्य अमर्यादित आचरण को मर्यादा की हदें सिखाता है। बिना वक्रोक्ति के साहित्य सृजन संभव नहीं है। व्यंजना वही जो व्यंजित, आंदोलित और आलोकित करे। उन्होंने कहा कि व्यंग्य की व्यंजना 3 शब्द शक्तियों अमिधा, लक्षणा और व्यंजना में समाहित है तथा यह कृति तीनों व्यंजनाओं को अभिव्यक्त करती है । लेखक प्रो.विजय कलमधार ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि बौध्दिक कंगाली के समय में व्यंग्य ही साहित्य को बचा सकता है। इसी बात को केंद्र में रखकर उन्होंने अपनी कृति का सृजन किया है। कार्यक्रम का संचालन करते हुये प्रो.टीकमणी पटवारी ने कहा कि व्यंग्य का प्रयोग समाज की पीड़ा को कम करने, कदाचरण को सद्व्यवहार में बदलने और शोषण के खिलाफ सटीक साहित्यिक बिगुल फूंकने के लिये किया जाता है। कार्यक्रम में प्रो.श्रीपाद आरोणकर ने शास्त्रीय संगीत के साथ सरस्वती वंदना प्रस्तुत की । अंत में समिति के मंत्री श्री प्रकाश साव ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में शहर के साहित्य प्रेमियों के साथ ही हिंदी प्रचारिणी समिति के अध्यक्ष श्री शिवकुमार गुप्ता और साहित्य सचिव श्री रणजीत सिंह परिहार की गरिमामयी उपस्थिति रही।


