प्राचीन संस्कृति और सभ्यता का पर्व है भुजलिया
हर्षोल्लास के साथ मनाया गया भुजलिया उत्सव, भुजलिया,नाले में उमड़ा जन सैलाब
नवागत थाना प्रभारी के कुशल नेतृत्व में चाक चौबंद रही पुलिस व्यवस्था
शनिवार को बंधा ताल में आयोजित होगा भुजलिया मेला
मनेश साहू संपादक
जुन्नारदेव ---- सावन महीने की पूर्णिमा को रक्षाबंधन मनाने के बाद अगले दिन भाद्रपद महीने की प्रतिपदा को भुजलिया पर्व मनाया जाता है। इसे कजलिया पर्व भी कहते हैं। इस दिन लोग एक-दूसरे से मिलकर गेहूं की भुजलिया देते हैं और उन्हें शुभकामनाएं देते हैं। यह पर्व अच्छी बारिश होने, फसल होने, जीवन में खूब सुख-समृद्धि आने की कामना के साथ मनाया जाता है, लिहाजा इस दिन लोग एक-दूसरे को धन-धान्य से भरपूर होने की शुभकामना के संदेश देते हैं। यह पर्व बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है
गेहूं-जौ से बनती हैं भुजलिया----- गेहूं और जौ के दानों से भुजलिया उगाई जाती हैं, इसके लिए सावन के महीने की अष्टमी और नवमीं को बांस की छोटी टोकरियों में या पत्तो के दोनों में मिट्टी बिछाकर गेहूं या जौं के दाने बोए जाते हैं। फिर उन्हें रोजाना पानी दिया जाता है, करीब एक सप्ताह में इनमें अंकूर फूट आते हैं और भुजलिया उग आती हैं। भुजलिया पर्व के दिन यही भुजलिया एक-दूसरे को बांटी जाती हैं और बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है, इन भुजलियों की पूजा भी की जाती है ताकि इस साल अच्छी बारिश हो और फसल हो सके।
भुजलियों की पूजा का महत्व भुजलियों की पूजा अर्चना की जाती है एवं कामना की जाती है, कि इस साल बारिश बेहतर हो जिससे अच्छी फसल मिल सकें ये भुजरिया चार से छह इंच की होती हैं और नई फसल की प्रतीक होती हैं। भुजरिया को लेकर पौराणिक कथा है राजा आल्हा, ऊदल की बहन चंदा से जुड़ी है। आल्हा की बहन चंदा जब सावन महीने में नगर आई तो लोगों ने कजलियों से उनका स्वागत किया था, तब से ही यह परंपरा चली आ रही है। इसके अलावा महोबा में आला-उदल-मलखान की वीरता के किस्से आज भी सुनाए जाते हैं। बुंदेलखंड की धरती पर आज भी इनकी गाथाएं लोगों को मुंह जुबानी याद है। महोबा के राजा परमाल उनकी बेटी राजकुमारी चन्द्रावलि का अपहरण करने के लिए दिल्ली के राजा पृथ्वीराज ने महोबा पर चढ़ाई कर दी थी। राजकुमारी उस समय तालाब में कजली सिराने अपनी सहेलियों के साथ गई थीं। राजकुमारी को पृथ्वीराज से बचाने के लिए राज्य के वीर सपूत आल्हा-उदल-मलखान ने अपना पराक्रम दिखाया था। इन दोनों के साथ राजकुमारी चन्द्रावली का मामेरा भाई अभई भी था। इस लड़ाई में अभई और राजा परमाल का एक बेटा रंजीत वीरगति को प्राप्त हो गए। बाद में आल्हा, उदल, मलखान, ताल्हन, सैयद, राजा पहरमाल के दूसरे बेटे ब्रह्मा ने पृथ्वीराज की सेना को हराकर राजकुमारी को बचाया। इसी के बाद से पूरे बुंदेलखंड में इस पर्व को विजय दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
भुजलिया नाले मे हर्षोल्लास के साथ मनाया गया पर्व शुक्रवार को नगर के वार्ड क्रमांक 2 और जुन्नारदेव विशाला की सीमा पर स्थित भुजलिया नाले में भुजरिया पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। नगर के दोनों और बातों पर एक और नगर के पुरानी बस्ती की महिलाओं की टोली और दूसरी और जुन्नारदेव विशाला की महिलाओं की टोली के बीच भुजलिया पर जमकर एक दूसरे को खींच टटोली की गई इस दौरान भुजलिया पर्व देखने आए लोगों ने जमकर आनंद उठाया हजारों की संख्या में लोग भुजालिया नाले के पास उपस्थित रहे जिन्होंने इस मेले का लुत्फ जमकर उठाया। मेले में बच्चों को रिझाने के लिए रंग-बिरंगे फ्यूज खिलौने खाद्य पदार्थों में चार्ट गुपचुप और अन्य खाद्य पदार्थ भी दुकानों में दिखाई दिए।
पुलिस प्रशासन की रही चकबंदी व्यवस्था भुजलिया नाले पर प्रति वर्ष अनुसार लगने वाले इस ऐतिहासिक मेले में लगातार क्षेत्र के लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है आस्था का केंद्र भुजलिया नाले पर इस वर्ष बड़ी संख्या में क्षेत्र के लोग इस मेले में सम्मिलित हुए जहां पर नवागत थाना प्रभारी कोमल सिंह रघुवंशी के कुशल नेतृत्व इस मेले में चाक चौबंद व्यवस्थाएं बनाई गई। जहां पर यातायात सहित मेले में सम्मिलित लोगों को पूर्ण सुविधा का ध्यान रखा गया। इस दौरान जुन्नारदेव थाने का पुलिस बल भी मौजूद रहा।
शनिवार 2 सितंबर को आयोजित होगा बंधा ताल पर भुजलिया पर्व ----- रक्षाबंधन की दो-दो तिथि होने के चलते इस वर्ष भुजलिया पर्व के मनाए जाने के समय में भी परिवर्तन हुआ है। जुन्नारदेव नगर की भुजलिया का त्यौहार शनिवार, 2 सितंबर 2023 को दोपहर 4 बजे स्थानीय बंधा ताल में मनाया जाएगा। इस आशय का प्रस्ताव गत दिनों शांति समिति, जुन्नारदेव की बैठक में पारित किया गया था। अतः जुन्नारदेव का भुजालिया पर्व शनिवार को बंधा ताल पर आयोजित किया गया है।

