नारद मोह की लीला के साथ श्री रामलीला का आरंभ....
अखंड भारत (अब पाक) से लाये गए मुकुट पूजन से प्रारंभ हुई रामलीला....
जुन्नारदेव-
प्रतिवर्ष अनुसार इस वर्ष भी मध्य भारत की सर्वाधिक ऐतिहासिक धरोहर रही सांस्कृतिक, धार्मिक व सामाजिक पहचान रही श्री रामलीला का बीती रात्रि से भव्य शुभारंभ हो गया। स्थानीय श्री रामलीला मंच, विजय स्तंभ पर बीते 97 वर्षों की परंपरा को बरकरार रखते हुए श्री नारद मोह की लीला से इस वर्ष भी रामलीला का प्रारंभ हुआ। प्रथम दिवस की इस लीला में श्री नारद मोह की लीला का भव्य मंचन किया गया। इसमें भगवान श्री विष्णु के द्वारा अपने प्रिय अनुरागी शिष्य देव ऋषि नारद के अभिमान को चूर करने की लीला दिखाई गई। प्रभु भक्ति में लीन रहने वाले देव ऋषि नारद जब अपनी तपस्या में लीन थे, तब ही कथित तौर पर देवराज इंद्र के सिंहासन में कंपन हो उठता है, जिससे वह घबराकर देव ऋषि नारद की तपस्या को भंग करने के लिए अपने सखा कामदेव और कई अप्सराओं को देव ऋषि नारद की तपस्या को खंडित करने हेतु भेज देते हैं। कामदेव के द्वारा लाख जतन करने के बावजूद देवर्षि नारद की यह तपस्या खंडित नहीं होती है। अंततः कामदेव अपनी हार स्वीकार कर लेते हैं। देवराज इंद्र के मित्र कामदेव और अप्सराओं पर अपनी जीत से देव ऋषि नारद अत्यंत अभिभूत हो जाते हैं और वह तीनों लोकों में अपनी इस कीर्ति का बखान करते फिरते रहते हैं। अपने प्रिय शिष्य देव ऋषि नारद के अंतर्मन में इस प्रकार अभिमान पैदा हो जाने के कारण भगवान विष्णु एक लीला सृजीत करते हैं, जिसके तहत शीलनगर की रचना कर वहां की सुंदरी का स्वयंवर की लीला रच देते हैं। श्रीनगर के राजा की पुत्री की सुंदरता पर मोहित होकर नारद उनसे विवाह करने के स्वप्न देख लेते हैं और इसीलिए वह भगवान विष्णु से हरि रूप मांग लेते हैं। इसी लीला में आगे भगवान विष्णु के द्वारा नारद के इस अभियान का मर्दन कर दिया जाता है। इस लीला में भगवान विष्णु की भूमिका आकाश परसाई, नितिन चिंटू बत्रा (नारद), भव्य शर्मा (भगवान शंकर, कार्तिक व्यास (भगवान ब्रह्मा), अक्षय जोशी (कामदेव), शोभित गुप्ता (देवराज इंद्र), मुकेश विश्वकर्मा (शीलनिधि) एवं विश्वमोहिनी (अंजनेय रसेला) तथा शिवगण के रूप में बेनी प्रसाद बरहेया एवं मुन्नालाल जामधरिया के द्वारा भूमिकाओं का निर्वहन किया गया।
अखंड भारत (अब पाक में) से लाये गए चांदी के मुकुटों के पूजन से शुरू हुई रामलीला..
बीते 97 वर्षों की परंपरा का पालन करते हुए इस वर्ष भी रामलीला का शुभारंभ किरीट पूजन से किया गया। गौरतलब है कि अखंड भारत अब भारत से यह रजत मिश्रित धातु के मुकुट नगर की प्रतिष्ठित स्वर्गीय जीवनदास जी मिगलानी एवं उनके परिवार के द्वारा लाये गए थे। सन 1947 में भारत विभाजन के पहले यह परिवार और पंजाबी समाज पाकिस्तान के उसे हिस्से में रामलीला का ईश्वरीय आशीर्वाद से मंचन करता रहा था। सन 1947 के विभाजन की विभीषिका के दौरान इस मिगलानी परिवार के द्वारा यह मुकुट छिपा कर भारत ले गए थे। यह मान्यता है कि इन किरीट पूजन करने के पश्चात ही रामलीला का भव्य शुभारंभ किया जाता है। अब आज मंगलवार की लीला में धनुष यज्ञ, रावण-बाणासुर संवाद एवं लक्ष्मण-परशुराम की लीला का मंचन किया जाएगा।

