सकल जैन समाज को दिया रतलाम पंचकल्याणक का मंगल आमंत्रण
छिंदवाड़ा - चरणानुयोग, करणानुयोग का तर्क लेकर छल ग्रहण नहीं करना, स्वाध्याय चार अनुयोग सम्मत अच्छे से करो, अकर्ता, विवेक, अहिंसक पूर्वक करें। जिनवाणी अच्छे से विराजमान करने का अर्थ विराजमान करने का भाव ही उत्पन्न न हो ये है।
समाधि कराना परोपकार नहीं स्व - उपकार है उक्त मार्मिक बात बाल ब्रह्मचारी सुमतप्रकाशजी जैन ने की वीतराग भवन में चल रहे समाधि साधना प्रशिक्षण शिविर एवं निर्यापक सम्मेलन में जिसका लाभ सकल जैन समाज के साथ मुमुक्षु मंडल एवं अखिल भारतीय जैन युवा फेडरेशन के जिनशासन सेवक ले रहे हैं।
उन्होंने कहा कि औदयिक भाव तो केवली के भी नहीं मिलते, एक समय भी सामने वाले के अदायिक भाव की शिकायत मत करो। क्षपक और निर्यापक सम्यकदृष्टि हों अथवा ना भी हों, तो भी औदियिक भाव नहीं मिलेंगे। पांच इन्द्रिय के विषयभोग का नाम वात्सल्य नहीं, अपितु आत्मा की रक्षा का नाम वात्सल्य है। हमें कोई नहीं जाने, सर्वज्ञ जानें, इसमें हमारी खुशी है।
सबसे कम योग्यता वाले को भी सामाधि करा सके, वह सबसे बढ़िया निर्यापक है। हठाग्रह मत करना कि क्षपक गलतियां नहीं करे, बस गलतियों का पक्ष छुड़ाना है। जिन्हें अच्छे निर्यापक चाहिए वे अच्छे से निर्यापन करें, बहाने ना करें, अनुकूलता में भी भेदविज्ञान की जरूरत है और प्रतिकूलता में भी।
अपने भेदज्ञान को चार अनुयोगों से मिलान करते चलें, क्षपक और निर्यापक को आम जनता के संपर्क से बचना चाहिए। किसी बिगड़े हुए व्यक्ति के साथ भी अच्छा व्यवहार करो, भेद विज्ञान करो। अकर्ता देखो। सबको मिलाने की कोशिश मत करो, केवल भेद विज्ञान करो।
नींद ना आए, तो सोने की कोशिश मत करो। भेद विज्ञान करो। नींद बेहोश होने से नहीं, कोशिकाओं को ढीला छोड़ने से पूरी होती है। जहां तेरा उपयोग रमता है, वहां जन्म होता है उदाहरण के लिए यदि 10 लाख की लैट्रिन बनवाई यदि वहां उपयोग में तो वहीं जन्म होगा।
जो जिनदेव की श्रद्धा नहीं करते, उन्हें रामदेव की श्रद्धा करनी पड़ती है। जैन यदि जैन चरणानुयोग का पालन करेंगे, तो कभी बीमार नहीं होंगे। संयम से सातावेदनीय और सातवेदनीय से स्वस्थ होते हैं। निचली भूमिका में क्षपक और निर्यापक का नो कोटि से त्याग नहीं होता, इसीलिए क्षपक, निर्यापक के किसी औदयिक भाव से परेशान ना हो। कभी मत सोचो की क्षपक और निर्यापक परम शांत हों।
ऐसा सोचना उनकी नो कोटि का उल्लंघन होगा। औदयिक भाव को औपशमिक और क्षायोपशमिक मत मानो।
निदान बंध करना अथवा ना करना हमारे हाथ में नहीं है। अनंत काल से पहले गुरु चाहे, गुरु की भावना भायी, गुरु मिल गए तो गुरु के अभाव की भावना भाई, ऐसा निदान बंद किया।
शुद्ध उपयोग का घात करके कोई काम मत करो। अशुभ में जा रहे हो तो शुभ में प्रवर्तो, संकलेश मत करो ।
जीवन में कोई भी काम छोटा नहीं होता, अपने पर्याय की योग्यता अनुसार कार्य करते चलो। चाहे छोटा हो अथवा बड़ा।
किसी की समाधि छोड़कर शिवर आदि में जाना छोटा काम है। जो शुद्ध उपयोग के आराधक नहीं है वह निदान करेंगे। तत्व निर्णय के लिए स्वाध्याय है निदान के लिए नहीं। सुनने का निदान नहीं, समाने की भावना भाओ। विश्व की सारी चिकित्सा संवर बिना की निर्जरा है, जेनोपैथी संवर सहित की निर्जरा है। भाव संवर के बिना द्रव्य संवर नहीं होता, द्रव्य संवर के बिना नौकर्म संवर नहीं होता।
एक गलती समाधि बिगाड़ने के लिए बहुत है। अति किसी चीज की मत करो। जितना सातवेदनीय का उदय होता है उतना विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम शरीर अपने आप बना लेता है। अच्छे भोजन को खराब तरीके से खाकर बीमार हो रहे हैं। दवाइयां लेकर भूख नहीं बढ़ाना और नहीं पचाना।चरणानुयोग सजग रीति से करना, यही हमारा जैन योगा है। जब हम दूसरों की अपेक्षा करते हैं, तो उदय में हमारी उपेक्षा होती है। कभी किसी की अपेक्षा/ तिरस्कार नहीं करो, क्योंकि गलतियां सभी से होती हैं। लापरवाही चाहते हो तो लापरवाही करो। निर्यापक बनने के लिए करुणा और विवेक चाहिए।
*रतलाम पंचकल्याणक का दिया आमंत्रण -*
फेडरेशन सचिव दीपक राज जैन ने बताया की आगामी वर्ष 2025 में 10 से 15 जनवरी तक सकल दिगंबर जैन समाज रतलाम द्वारा पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का भव्य आयोजन होने जा रहा है जिसके मार्ग दर्शन - पं. अश्विनजी शास्त्री नानावटी नौगामा, राजकुमार अजमेरा - अध्यक्ष, मुकेश मोठीया - कोषाध्यक्ष, कमल पाटनी - कार्यकारिणी सदस्य ने महोत्सव हेतु सकल जैन समाज सहित मंडल एवं युवा फेडरेशन को मंगल आमंत्रण दिया।

