गुड़ी अंबाड़ा।
कोयलांचल क्षेत्र में अवैध ईंट भट्टों का कारोबार धड़ल्ले से जारी है। शासकीय और वन विभाग की भूमि पर नियमों को ताक पर रखकर भट्टों का संचालन किया जा रहा है। इन भट्टों के संचालन के लिए खनिज विभाग, ग्राम पंचायत और पर्यावरण विभाग से आवश्यक अनुमति तक नहीं ली गई है। जमकुंडा, नजरपुर, उड़िया मोहल्ला, कर्मवीर कॉलोनी, हर्राडाना और मोक्षधाम जैसे क्षेत्रों में बिना अनुमति के सैकड़ों अवैध ईंट भट्टे संचालित हो रहे हैं, जिससे न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है बल्कि खनिज विभाग को राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है।
वेकोलि की बंद खदानों से चोरी का कोयला
ईंट पकाने के लिए भारी मात्रा में कोयले की आवश्यकता होती है। इन अवैध ईंट भट्टों में वेकोलि (Western Coalfields Limited) की बंद खदानों से अवैध उत्खनन कर निकाले गए कोयले का उपयोग किया जा रहा है। कोयला माफिया रात के अंधेरे में अवैध रूप से कोयला निकालकर आसपास के भट्टों में सप्लाई कर रहे हैं। वेकोलि को राजस्व का करोड़ों का नुकसान हो रहा है, लेकिन स्थानीय प्रशासन इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा। खनिज विभाग, राजस्व विभाग और पुलिस प्रशासन की निष्क्रियता से क्षेत्र में नियम विरुद्ध सैकड़ों ईंट भट्टे चोरी के कोयले से सुलग रहे हैं।
शासकीय भूमि पर अवैध उत्खनन, सार्वजनिक जल स्रोतों का दुरुपयोग
अवैध ईंट भट्टों के लिए शासकीय भूमि और वन भूमि से मिट्टी खोदी जा रही है, जिसका उपयोग कच्ची ईंटें बनाने में किया जा रहा है। इतना ही नहीं, इन भट्टों में सार्वजनिक पेयजल स्रोतों का पानी इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल संकट गहराता जा रहा है।
पट्टे की भूमि पर हो रहा अवैध संचालन, खेती की जमीन हो रही बंजर
शासन द्वारा आदिवासी ग्रामीणों को भरण-पोषण और खेती के लिए दी गई पट्टे की भूमि को भी अवैध रूप से ईंट भट्टा संचालकों को बेच दिया गया है। इन जमीनों पर खेती की बजाय अवैध ईंट भट्टे संचालित किए जा रहे हैं। इससे न केवल जमीन बंजर हो रही है बल्कि बड़े-बड़े गड्ढे भी बन गए हैं। इससे जलस्तर में गिरावट हो रही है और कृषि योग्य भूमि धीरे-धीरे अनुपयोगी होती जा रही है। संयुक्त टीम द्वारा बनाई गई योजनाएं भी इस अवैध कारोबार को रोकने में पूरी तरह नाकाम साबित हो रही हैं।
नियमों की हो रही खुलेआम अनदेखी
जुन्नारदेव विकासखंड के जमकुंडा, नजरपुर और पालाचौरई ग्राम पंचायतों में शासकीय और वन भूमि पर ईंटें बनाकर खुलेआम बेची जा रही हैं। नियमानुसार ईंट भट्टा संचालकों को खनिज विभाग, पर्यावरण विभाग और ग्राम पंचायत से आवश्यक अनुमति लेनी चाहिए, लेकिन नियमों को दरकिनार कर अवैध रूप से भट्टों का संचालन हो रहा है। प्रशासन की लापरवाही और उदासीनता के कारण प्रतिवर्ष अवैध ईंट भट्टों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिससे पर्यावरण को नुकसान और शासन को आर्थिक क्षति हो रही है।
विभागीय लापरवाही पर उठ रहे सवाल
अवैध ईंट भट्टों की जानकारी खनिज, वन, राजस्व और पर्यावरण विभाग के अधिकारियों को भी है, लेकिन किसी भी विभाग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जा रही। सभी विभाग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर मामले को टाल देते हैं। इन भट्टों से हर साल लाखों की संख्या में ईंटें तैयार कर बेची जाती हैं और शासन को करोड़ों रुपए का राजस्व नुकसान होता है, लेकिन विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से अवैध कारोबार फल-फूल रहा है।
ग्रामीणों की मांग – अवैध भट्टों पर हो कार्रवाई
ग्रामीणों ने स्थानीय प्रशासन और खनिज विभाग से अवैध रूप से संचालित ईंट भट्टों पर तत्काल कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि यदि शीघ्र ही इन अवैध भट्टों पर रोक नहीं लगाई गई तो ग्रामीण बड़े आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। ग्रामीणों ने अवैध ईंट भट्टों से हो रहे पर्यावरण और जलस्रोतों के नुकसान पर चिंता जताई है और वेकोलि को राजस्व हानि से बचाने की मांग की है।
अब देखना यह है कि जिम्मेदार विभाग अवैध भट्टों पर कब तक कार्रवाई करते हैं या फिर इसी तरह अवैध कारोबार को मौन स्वीकृति देते रहेंगे।

