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सिंगोड़ी:-श्री तारण तरण दिगंबर जैन चैत्यालय जी में पर्युषण पर्व के शुभ अवसर पर आज उत्तम त्याग धर्म के सम्बंध में बाल ब्र बहिन अर्चना द्वारा बताया गया कि चोरी पाप के अभाव में त्याग धर्म प्रकट होता है।त्याग का अर्थ है छोड़ना,मोह ममत्व का त्याग करना,रागद्वेष,ईर्ष्या, अहंकार आदि दोषो को छोड़ना त्याग है।त्याग में ही वह शक्ति है जो समस्त विकारो का अभाव कर आत्म शक्तियो को प्रकट करने का साधन बनता है।त्याग और दान में बहुत अंतर है-त्याग बुराइयों का होता है और दान अच्छी वस्तुओं का होता है।त्याग सर्वस्व को छोड़ना है।जबकि दान अंश का त्याग है।त्याग आत्म शुद्धि है दान शुद्धि का साधन पुण्योपार्जन है।जो अपने धन का न दान करता है न उसका उपभोग करता है।उसका धन नाश को प्राप्त हो जाता है।हाथ का दिया साथ जाता है-बाकी सब यही धरा रह जाता है।जो दिया जाता है वह कीमती स्वर्ण सा हो जाता है।किन्तु जो संग्रह कर लिया जाता है वह मूल्यहीन माटी जैसा रह जाता है।त्याग के बिना दान संभव नही बाहर में जब धनादि बस्तुओं के प्रति ममत्व का त्याग होता है तभी वह बस्तु दान में दे पाता है।इस प्रकार त्याग और दान से मनुष्य जन्म की सार्थकता है।


