ओर महिला मंडल द्वारा सरस्वती वंदना से प्रारम्भ किया गया और संगीत के साथ कार्यक्रम की समाप्ति हुई।
नए साल की शुरुआत हो चुकी है. साथ ही त्योहारों ने भी दस्तक दे दी है, सबसे पहले लोहड़ी, फिर मकर संक्रांति और अब हल्दी कुमकुम. हल्दी कुमकुम को सभी राज्यो में बहुत ही उत्साह के साथ मनाया ज्यादा है. हल्दी कुमकुम समारोह में महिलाएं अपने पति के नाम से उखाणे लेती हैं. खास तौर पर उखाणे लेने की परंपरा नए शादीशुदा जोड़ी द्वारा निभाई जाती है.
इन मजेदार उखाणे के साथ हल्दी-कुमकुम कार्यक्रम को बनाएं खास
नए साल की शुरुआत हो चुकी है. साथ ही त्योहारों ने भी दस्तक दे दी है, सबसे पहले लोहड़ी, फिर मकर संक्रांति और अब हल्दी कुमकुम हल्दी कुमकुम को पूरे देश में बहुत ही उत्साह के साथ मनाया ज्यादा है. इस कार्यक्रम की शुरुआत मकर संक्रांति से शुरू हो जाती है और पूरा महिना चलता है. पहले हल्दी-कुमकुम सिर्फ कुछ ही राज्य और जिले में आयोजित किये जाते थे लेकिन अब यह देशभर में प्रसिद्द हो चुका है. हल्दी कुमकुम के दिन लोग अपने रिश्तेदारों के घर जाते हैं, विवाहित महिलाएं आपस में एक-दूसरे को हल्दी कुमकुम का टीका लगाती है. हल्दी कुमकुम नवविवाहित जोड़े के लिए खास होता है. मकर संक्रांति के दिन पहला हल्दी कुमकुम होता है. इस दिन महिलाएं एक-दूसरे को मिट्टी के छोटे से मटकेनुमा बर्तन में चने के होले, तिल-गुड़ के लड्डू, मूंग, चावल, गाजर व बोर मिला कर भर कर देती हैं.
ऐसा मानना है कि, मकर संक्रांति के बाद से दिन बढ़ता है. हल्दी कुमकुम के दिन विवाहित महिलाएं आपस में एक-दूसरे को हल्दी कुमकुम लगाकर तिलगुड़ खिलाती है. साथ ही शादीशुदा महिलाओं को सुहाग की चीजें जैसे कंगन, कुंकुम, बिंदी और फुल इत्यादि वस्तु भेंट में देती है. महिलाएं हल्दी कुमकुम कार्यक्रम आयोजन करती हैं. हल्दी कुमकुम समारोह में महिलाएं अपने पति के नाम से उखाणे लेती हैं. खास तौर पर उखाणे लेने की परंपरा नए शादीशुदा जोड़ी द्वारा निभाई जाती है, जिसे सुनने के लिए हर कोई बेताब होता है.
महिलाओ द्वारा शादी के बाद सुहागन महिला को उनके करीबी दोस्त और रिश्तेदार उन्हें घर में बुलाते हैं. फिर उनको हल्दी और कुमकुम लगाकर लगाया जाता है, इसके बाद सुहागन का छोटा सा तोहफा देते हैं, साथ ही तिलगुड़ का लड्डू दिया जाता है. महिलाएं तिलगुड़ का लड्डू अपने घरों में ही बनाती हैं.
हल्दी-कुमकुम समारोह को खास बनाएं. ऐसी भी मान्यता है कि, हल्दी कुमकुम मनाने की शुरुआत पेशवा साम्राज्य के दौरान हुई. उस जमाने में पुरुष युद्ध लड़ने चले जाते थे और सालों तक घर नहीं आते थे. ऐसे में महिलाएं घर से निकल नहीं सकती थीं इसलिए हल्दी कुमकुम के बहाने आस-पड़ोस की औरतों और सहेलियों को अपने घर बुलाती थी. उनके माथे पर हल्दी-कुमकुम लगाकर उनका स्वागत करती थीं. इस दौरान वो उपहार में कपड़े, इत्र व श्रृंगार का सामान भी भेंट में देती थीं. हल्दी कुमकुम के इस त्योहार को पूरे देश में बहुत ही धूमधाम के मनाया जाता है.

