सतपुड़ा की सुरम्य वादियों में बसा उपक्षेत्र अंबाड़ा के अंतर्गत स्थित प्रसिद्ध माँ हिंगलाज शक्तिपीठ।
नागलवाड़ी --- सतपुड़ा कि सुरम्य वादियों में बसा कोयलांचल क्षेत्र के अंबाड़ा मोहन कॉलरी स्थित आस्था व भक्ति का केंद्र बना श्री श्री मां हिंगलाज शक्तिपीठ समूचे देश में प्रसिद्ध है यही वजह है कि यहां पर हजारों की तादाद में श्रद्धालु गण पहुंचते हैं एवं माता के दरबार में माथा टेक मनचाही मुरादे पाते हैं साथ ही साथ यहा पर 4 से 5 हजार कि संख्या मे मनोकामना कलशो की स्थापना भी की जाती है जोकि आसपास के कई जिलों में देखने को नहीं मिलता है इसके अलावा भव्य मंदिर के आस-पास चहुओर सौंदर्यीकरण किया गया है जगह जगह फूल वाटिका व जानवरों के स्टेचू बनाए गए चित्रकारी कलाकृति भी की गई इसके अलावा पूर्व मोहन कालरी प्रबंधक के नाम पर सिंगौरे पार्क का निर्माण भी
कराया गया जहां पर झूले की व्यवस्था भी की गई जिसका आनंद छोटे-छोटे बच्चे व श्रद्धालुगण उठाते हैं । इन्ही सब कि वजह से हिंगलाज मंदिर का स्वरूप और भी खूबसूरत नजर आता है हिंगलाज मां के दरबार में जो भी मनोकामना मांगो वह पूरी होती है जिसकी वजह से लाखों लोग मंदिर तक पहुंचते हैं और मुरादे मांगते हैं साथ ही साथ इस मंदिर को विशाल व भव्य रूप देने में कहीं ना कहीं मोहन कॉलरी के अधिकारी व कर्मचारियों के अलावा स्थानीय नागरिकों का भी विशेष योगदान रहा है।।
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वेकोलि की खदानों में कार्यरत अधिकारी, कर्मचारी व श्रमिक संगठन के पदाधिकारीयो को लेकर बनाई गई श्री श्री मां हिंगलाज मंदिर समिति मंदिर की व्यवस्था व अन्य जिम्मेदारी निभाने में लगी रहती है।
मां हिंगलाज की संपूर्ण महिमा
विश्व की 51 देवी शक्तियो में माता हिंगलाज सर्व प्रथम पूज्य एवं शिरोमणि देवी है माता सती एवं भगवान शिव को राजा दक्ष ने यज्ञ में आने का निमंत्रण नहीं दिया किंतु माता सती के मन में माता-पिता से मोह होने के कारण वह राजा दक्ष के यहां चली गई किंतु माता सती इस यज्ञ में स्वयं अपना एवं भगवान शिव का स्थान ना देख क्रोधित हो उठी एवं अपने आपको यज्ञ कुंड की योगाग्नि में भस्म कर लिया जब वीरभद्र आदि गणो ने भगवान शिव कुपित होकर माता सती के मृत देह को कंधे पर रख कर रौद्र रूप में तांडव करने लगे तब त्रिलोक कांप उठा भगवान विष्णु ने जगत के समस्त प्राणियों का संहार होता देख अपने चक्र से माता सती के शव को क्षत- विक्षत कर दिया इस दौरान जिन जिन स्थानों पर माता सती का अंश गिरे मे सभी स्थानों पर विश्व मे 51 शक्ति पीठ बने, किंतु जिस स्थान पर माता सति का ब्रम्हरंद गिरा उस स्थान से माता हिंगलाज की उत्पत्ति हुई साथ ही स्वयं भगवान शिव भीम रोचन के रूप में पूजे जाने लगे स्वयं भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम लंका के राजा रावण का वध करने के पश्चात ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने माता हिंगलाज की तपस्या की एवं ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हुए इतना ही नहीं सभी देवी देवता 24 घंटे में एक बार अवश्य मां हिंगलाज की परिक्रमा कर नमन करते हैं। माता हिंगलाज का एक मंदिर पाकिस्तान के कराची शहर से 144 किलोमीटर दूर बलूचिस्तान प्रांत में है जहां पर वहां के हिंदू मुसलमान एवं सभी धर्म के लोग पूजा-अर्चना का कार्य करते हैं अपने भक्तों के आग्रह पर माता हिंगलाज मध्य प्रदेश एवं राजस्थान के पास हिंगलाज गढ़ में पूजी जाने लगी वहां के राजा काठियावाड़ क्षत्रिय कुल देवी के रूप में माता हिंगलाज की पूजा करने लगे, कालांतर मे उनके वंशज जीविको पार्जन हेतु छिंदवाड़ा जिले की सुरम्य वादियों के मध्य आ गए साथ ही माता की प्रतिमा भी ले आए जो स्वयं प्रकट हुई थी विधिवत पूजा अर्चना कर बड़कुही माइंस नंबर 2 त्रिवेदी माईन के पास मूर्ति को स्थापित कर दी गई जहां सभी लोग पूजा पाठ का कार्य करने लगे वर्ष 1907 के लगभग जब अंग्रेज मालिक इस खदान क्षेत्र के पास सीआरओ कैम्प का निर्माण करवाने अपने कामगारों को स्थापित मूर्ति को हटवाने का निर्देश दिया किंतु मूर्ति टस से मस नहीं हुई सारे प्रयासों को असफल होता देख अंतत:अंग्रेज मालिक घर जाकर सो गया इसी दौरान मां हिंगलाज उस अंग्रेज अधिकारी के स्वप्न में आ मूर्ति ना हटाने को चेताया किंतु महज निद्रा स्वप्न मान उस अंग्रेज अधिकारी ने अपने कामगारों को उस मूर्ति को हटाने का निर्देश दे अपनी पत्नी एवं पालतू कुत्ते के साथ खदान के अंदर घूमने चला गया एवं जैसे ही वह अंग्रेज अधिकारी खदान के अंदर प्रवेश किया तो अचानक प्रवेश द्वार (मोहरा)धस गया जिसमें वे तीनों ही जिंदा दफन हो गए एवं उसी दिन रात्रि में तेज विस्फोट धमाकों और तेज लपटों के मध्य माता हिंगलाज ने इस स्थान को छोड़ दिया एवं हिंगलाज क्षेत्र के घने जंगलों में (इमली के विशाल वृक्ष के नीचे) विराजमान हो गई, एवं रात्रि में ही माता ने अपनी इस उपस्थिति की जानकारी पुरुषोत्तम ठेकेदार को दी तत्पश्चात ठेकेदार अपने साथी तूफानी बाबा को ले उस घने जंगलों की और चल दिए एवं माता द्वारा बताए स्थान पर पहुंच खोजना प्रारंभ कर दिया एवं मिलने पर माता के दर्शन किए एवं इस स्थान पर छोटी सी मढिया का निर्माण करा कर नियमित पूजा पाठ का कार्य प्रारंभ करवाया गया, इसके पश्चात उपक्षेत्र अंबाड़ा के अंतर्गत आने वाली मोहन कॉलरी के अधिकारियों ने खान श्रमिकों के सहयोग से मंदिर के निर्माण की रूपरेखा तैयार की जिसके चलते आज यह मंदिर विशाल एवं भव्य रूप लिए हुए हैं एवं मंदिर का सौंदर्यीकरण देखते ही बन रहा है।।



