, तामिया। छिंदवाड़ा जिले के नाम की पहचान छींद के पेड़ से है, अब इसी छींद से बनी राखी बाजार में नजर आएंगी। ये पहल है कि युवा समाजसेवी पवन श्रीवास्तव ने, जिन्होंने अपने प्रयासों से छींद की राखियां तैयार करवाई हैं, जो दिखती तो आम राखी की तरह ही हैं, दाम भी काफी कम हैं। रक्षा सूत्र 21 रुपये, फैंसी राखी 50 रुपये और सात्विक राखी 100 रुपये में उपलब्ध है। शुरुआत में कम राखियां तैयार की हैं, लेकिन इन राखियों का मुख्य मकसद युवाओं को रोजगार से जोड़ना और जिले की धरोहर को बनाए रखना है। छिंदवाड़ा की गुम हो रही छींद की पहचान के चलते तामिया निवासी पवन श्रीवास्तव काफी चिंतित थे। उन्हें विरासतों को सहेजने के पीछे का अर्थशास्त्र पता था। वे चाहते थे कि छिंदवाड़ा की छींद वाली पहचान बने रहे। इसके लिए पवन श्रीवास्तव ने छींद के पेड़ के जरिए लोगों को रोजगार जोड़ने की पहल की। काफी मंथन और सोच विचार के बाद पवन ने स्थानीय लोगों के साथ छींद के पेड़ों से बनी राखी बनाने में कामयाबी हासिल की। छींद के पेड़ों से जब लोगों को धनोपार्जन होगा तो निश्चित ही लोग इन पेड़ों की रक्षा के बारे में सोचेंगे, जिससे छिंदवाड़ा की पहचान बची रहेगी। पवन श्रीवास्तव ने छींद से बनी राखियां बनवा ली हैं, जिसे वे इस रक्षाबंधन पर प्रायोगिक तौर पर मार्केट में लाए हैं। जागरूक नागरिक सचिन श्रीवास्तव ने इंटरनेट मीडिया पर इसका प्रचार भी किया है। उन्होंने बताया कि आम जनता के प्रतिसाद के बिना ये प्रयोग सफल नहीं होगा। ईको फ़्रेंडली इन स्वदेशी राखियों के प्रति सबको रुझान दिखाना होगा। सचिन श्रीवास्तव ने कहा कि जरूरी नहीं है कि पर्यावरण बचाने पेड़ ही लगाए जाएं, स्थानीय उत्पाद की ख़रीद को बढ़ावा देकर भी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में योगदान दिया जा सकता है। इस रक्षा बंधन अपने भाई की कलाई पर आप छिंदवाड़ा की पहचान यानि छींद से पत्तों से सजी रंगबिरंगी और आकर्षक राखी सजा सकती हैं, जो छिंदवाड़ा में ही उपलब्ध है। पातालकोट के आदिवासी अंचल में रहने वाले वनवासियों ने तामिया और छिंदवाड़ा का पर्यटन प्रमोशन करने वाले युवा पवन श्रीवास्तव की पहल और मार्गदर्शन में राखियों का निर्माण किया है। पवन ने बताया कि छींद के पत्तों से राखी बनवाने का उद्देश्य छींद के पेड़ों को बचाना और इनका संरक्षण करना है। छींद से ही छिंदवाड़ा का नाम है। रुद्राक्ष, शंख, चंदन, जरी से सजी राखियां बेहद खूबसूरत हैं।

