उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था में मजबूत इच्छाशक्ति, समन्वय और भरोसे से बची मां व नवजातों की जान
छिंदवाड़ा जिले के हर्रई और तामिया ब्लॉक के स्वास्थ्य अमले ने एक उच्च जोखिम वाली गर्भवती महिला और उसके जुड़वा नवजातों की जान बचाकर एक मिसाल कायम की है। यह सफलता कहानी आशा कार्यकर्ता, सीएचओ, ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर, परियोजना अधिकारी, जिला स्वास्थ्य विभाग, प्रशासनिक समन्वय और जिला प्रशासन के मार्गदर्शन से संभव हो सकी।
ग्राम काराघाट निवासी ललता कुमरे (पति भुजनलाल कुमरे) तीसरी बार गर्भवती थीं। पूर्व की दोनों गर्भावस्थाओं में बच्चों की मृत्यु हो चुकी थी। महिला पिछले कुछ वर्षों से नर्मदापुरम जिले के पिपरिया ब्लॉक में पलायन कर रह रही थी और गर्भवती होने के बाद अपने मायके ग्राम मोरढाना, ब्लॉक तामिया में आकर रह रही थी।
दिनांक 26 नवंबर 2025 को मोरढाना की आशा कार्यकर्ता द्वारा गृह भ्रमण के दौरान महिला के पूरे शरीर में सूजन और अत्यधिक उच्च रक्तचाप (174/117) पाया गया। महिला अस्पताल जाने को तैयार नहीं थी, लेकिन आशा, सीएचओ और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की संयुक्त पहल से घर पर जांच की गई और स्थिति गंभीर पाए जाने पर तामिया अस्पताल रेफर किया गया।
तामिया ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉ. जितेंद्र उइके ने हर्रई ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉ. रानी वर्मा से समन्वय कर प्राथमिक उपचार के बाद महिला को जिला चिकित्सालय छिंदवाड़ा रेफर कराया। जांच में महिला का हीमोग्लोबिन कम पाया गया तथा सोनोग्राफी में जुड़वा गर्भ की पुष्टि हुई।
इलाज के दौरान महिला और उसके पति अस्पताल से बिना बताए लौट आए, लेकिन स्वास्थ्य अमले की तत्परता से उन्हें पुनः तामिया बाजार से खोजकर जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। लगातार काउंसलिंग और फॉलोअप के बाद महिला सिजेरियन डिलीवरी के लिए सहमत हुई।
दिनांक 4 दिसंबर 2025 को सफल सिजेरियन डिलीवरी के माध्यम से महिला ने दो स्वस्थ पुत्रों को जन्म दिया। एक बच्चे का वजन 2.1 किलोग्राम और दूसरे का 1.8 किलोग्राम रहा। दोनों नवजातों को एक दिन तक SNCU में रखा गया। चार दिन के उपचार के बाद 8 दिसंबर 2025 को मां और दोनों बच्चों को स्वस्थ अवस्था में अस्पताल से छुट्टी दी गई।
इस सफलता में बीएमओ डॉ. रानी वर्मा, डॉ. जितेंद्र उइके, सीडीपीओ रत्नेश वैद्य, बीपीएम सुशील सूर्यवंशी व मनोज श्रीवास्तव, सीएचओ मनोज सूर्यवंशी, आशा सहयोगी रीना कुडोपा एवं आशा कार्यकर्ता मेहतवती कुमरे की सराहनीय भूमिका रही।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि सीएमएचओ के दिशा-निर्देश और कलेक्टर के मार्गदर्शन के बिना यह सफलता संभव नहीं थी। यह कहानी बताती है कि समय पर पहचान, समन्वय और विश्वास से उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था में भी मां और शिशु का जीवन सुरक्षित किया जा सकता है।

