मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की हैं 9 दिव्य आयुर्वेदिक औषधियां
छिन्दवाड़ा/ जिला चिकित्सालय के आयुष विंग में पदस्थ आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉ.नितिन टेकरे ने बताया कि आयुर्वेद में 15 दिन की ऋतु संधि होती है जैसे बर्षा ऋतु व शीत ऋतु संधि और शीत ऋतु व ग्रीष्म ऋतु संधियों में नवरात्र आते है। इस समय ऋतु संधि पर लोगों की इम्युनिटी कम हो जाती है जिससे लोग इस नवरात्रि में सभी उपवास कर आयुर्वेद मतानुसार लंघन कर स्वयं को स्वस्थ रखते हैं। पिछले सालों से कोरोना वायरस के बुरे दौर से बचने के लिए लोगों को मास्क पहनने, हाथों को सेनैटाइज करने और इम्युनिटी बढ़ाने जैसी मुख्य हिदायतें दी जा रही हैं। दिव्य 9 आयुर्वेदिक औषधियों में नवदुर्गा के 9 रुप विराजते हैं। नवदुर्गा यानि मां दुर्गा के नौ रूप मानी जाने वाली इन 9 औषधियों को खुराक के रूप में लेने से न सिर्फ इम्युनिटी बढ़ेगी, बल्कि शरीर को कैंसर जैसी कई बीमारियों से लड़ने में भी मदद मिलेगी। इन औषधियों को मार्कण्डेय चिकित्सा पध्दति और ब्रह्माजी द्वारा उपदेश में दुर्गा कवच कहा गया है। ये कई रोगों के प्रति एक कवच का काम करती हैं, इसलिए इन्हें दुर्गा कवच कहा जाता है। ये दिव्य औषधियां देवी
 |
|
शैलपुत्री-हरड़/हर्रा, देवी ब्रह्मचारिणी-ब्राह्मी, देवी चंद्रघंटा-चंद्रसूर, देवी कुष्माण्डा-पेठा/कद्दू, देवी स्कंदमाता-अलसी, षष्ठम कात्यायनी-मोइया, देवी कालरात्रि-नागदोन, देवी महागौरी-तुलसी, देवी सिध्दीदात्री-शतावरी के रूप में जानी जाती है।
आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉ.टेकरे ने बताया कि आयुर्वेद में हिमावती औषधि हरड़ या हरीतकी देवी शैलपुत्री का ही एक रूप हैं, जो सात प्रकार की होती है। इससे पेट संबंधी समस्याएं नहीं होतीं और ये अल्सर में काफी फायदेमंद है। इसकी तासीर गर्म होती है, इसलिए सर्दियों में इसका सेवन कई रोगों से बचाने में मदद करता है। नवदुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी का स्वरूप ब्राह्मी औषधि याददाश्त बढ़ाने में मदद करती है। ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है। ब्राह्मी में भरपूर मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट पाया जाता है जो शरीर में कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकता है। वहीं इसका नियमित सेवन पाचन क्रिया को भी दुरुस्त रखता है। चन्द्रसूर या चमसूर धनिए के समान दिखने वाला ऐसा पौधा है जिसकी पत्तियां सब्जी बनाने के लिए उपयोग की जाती है। इसका
 |
|
नियमित सेवन मोटापा कम करने के साथ ही इम्यूनिटी बढ़ाता है। साथ ही यह पौधा स्मरण शक्ति बढ़ाने और दिल को स्वस्थ रखने में भी मददगार है। पेठा को कुम्हड़ा भी कहते हैं, इसलिए इसे नवदुर्गा का चौथा रूप माना जाता है। यह औषधि शरीर में सभी पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के साथ ही रक्त पित्त व रक्त विकार को दूर करती है। पेट के लिए भी यह औषधि किसी रामबाण से कम नहीं है। रोजाना इसका सेवन मानसिक व दिल की बीमारियों से भी बचाता है। नवदुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता है जिन्हें पार्वती या देवी उमा भी कहा जाता है। यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान है । इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर होता है। अलसी का सेवन कैंसर, डायबिटीज और हार्ट प्रॉब्लम का खतरा घटाता है। आयरन, प्रोटीन और विटामिन-B6 से भरपूर अलसी एनीमिया, जोड़ों के दर्द, तनाव व मोटापा घटाने में भी फायदेमंद है।
 |
|
इसी प्रकार नवदुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है जिन्हें मोइया या माचिका भी कहा जाता हैं। यह औषधि कफ व पित्त की समस्याओं को दूर रखती है। इसके अलावा यह औषधि कैंसर का खतरा भी घटाती है। दुर्गा के सातवे रूप में कालरात्रि को नागदोन औषधि के रूप में जाना जाता है। इससे ब्रेन पावर बढ़ती है और तनाव, डिप्रेशन, ट्यूमर, अल्जाइमर जैसी समस्याएं दूर रहती हैं। वहीं इसकी 2-3 पत्तियां काली मिर्च के साथ सुबह खाली पेट लेने से पाइल्स में फायदा मिलता है। साथ ही इसके पत्तों से सिंकाई करने पर फोड़े-फुंसी की समस्या भी दूर होती है। नवदुर्गा के आठवे रूप महागौरी का औषधि नाम तुलसी के रूप में भी जाना जाता है। जहां धार्मिक नजरिये से घर में तुलसी लगाना शुभ माना जाता है, वहीं सेहत के लिए भी यह रामबाण औषधि है। तुलसी का काढ़ा या चाय रोजाना पीने से खून साफ होता है। साथ ही इससे दिल के रोगों का खतरा भी कम होता है। यही नहीं इससे कैंसर का खतरा भी कम होता है। नवदुर्गा का नवम रूप सिध्दीदात्री जिसे शतावरी भी कहा जाता है, स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए बेहतरीन औषधि है। यह रक्त विकार को दूर करने में मदद करती है। वहीं रोजाना इसका सेवन करने से शरीर में कैंसर कोशिकाएं नहीं पनपती। शतावर में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इन्फ्लामेट्री और घुलनशील फाइबर होता है जो पेट को दुरुस्त रखने के साथ ही कई रोगों से बचाने में मददगार है। इस प्रकार आयुर्वेद में सभी व्रत त्यौहार में वैज्ञानिक कारण उपलब्ध होता है।