जिले के किसानों का फसल विविधीकरण के अंतर्गत प्राकृतिक रूप से खेती करने के प्रति निरंतर रूझान बढ़ रहा है । प्राकृतिक खेती से जहां उनके फसल उत्पादन में वृध्दि हो रही है, वही उन्हें आर्थिक लाभ भी हो रहा है । छिंदवाड़ा जिले के विकासखंड परासिया के ग्राम कुंडालीखुर्द के श्री बलबीर चंद्रवंशी पिता केवल प्रसाद चंद्रवंशी ऐसे प्रगतिशील कृषक हैं जो प्राकृतिक खेती के द्वारा अच्छा उत्पादन और आमदनी प्राप्त कर रहे हैं । साथ ही रसायनिक दवाओं पर लगने वाले खर्च की बचत भी कर रहे हैं । गत मौसम में कृषक श्री बलबीर चंद्रवंशी ने रसायनिक उर्वरक और कीटनाशक दवाओं के बिना मिर्च की खेती कर लगभग 5 लाख रूपये की आमदनी प्राप्त की है और निरंतर आर्थिक रूप से समृध्द हो रहे हैं ।
ग्राम कुंडालीखुर्द के श्री बलबीर चंद्रवंशी के पास 2 एकड़ जमीन है और वे विगत 5 वर्षो से खेती कर रहे हैं । दूसरे किसानों के जैसे ही वे भरपूर मात्रा में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करते थे तथा प्राप्त आमदानी से अपना परिवार चलाते थे । आत्मा परियोजना के अधिकारी के माध्यम से जब उन्हें प्राकृतिक खेती के संबंध में जानकारी प्राप्त हुई तो अपनी खेती की तकनीक में परिवर्तन करते हुये उन्होंने अधिकारियों के मार्गदर्शन में पिछले मौसम में 1.50 एकड़ जमीन पर मिर्च की फसल और आधा एकड़ में ककड़ी की फसल लगाई । इन फसलों में पूर्व की तरह रसायन का प्रयोग नहीं करते हुए उन्होंने सिर्फ प्राकृतिक रूप से तैयार किये गये कीटनाशक ब्रम्हास्त्र व अग्निअस्त्र और फफूंदनाशक मठा और हल्दी का प्रयोग करने के साथ ही गोबर खाद का ही प्रयोग किया। साथ ही अपनी फसल पर प्रत्येक 10-12 दिन के अन्तर से छिड़काव किया जिससे अच्छा उत्पादन प्राप्त हुआ । कृषक श्री चंद्रवंशी ने बताया कि 1.50 एकड़ क्षेत्र में मिर्च की फसल से मुझे रासायनिक दवाओं पर लगने वाले खर्च लगभग एक लाख रूपये बचत होने के साथ ही मुझे शुध्द रूप से 5 लाख रूपये की आमदानी प्राप्त हुई तथा रासायनिक दवाओं से होने वाले दुष्प्रभाव से मैं अपने परिवार और उपभोक्ताओं को बचा पाया । वर्तमान में मेरे खेत में प्राकृतिक खेती की यूनिट लगी है जिसमें मेरे द्वारा जीवामृत, घनजीवामृत व ब्रम्हास्त्र के साथ ही वर्मी कम्पोस्ट खाद का उत्पादन कर फसलों में प्रयोग किया जा रहा है । कृषक श्री बलबीर चंद्रवंशी ने बताया कि मुझे आत्मा परियोजना के माध्यम से कृषि वैज्ञानिकों द्वारा प्राकृतिक खेती के विषय में प्रशिक्षण दिया गया और स्वयं प्राकृतिक खेती करने के बाद इसके परिणामों को देखकर अब मैं अपने ग्राम के अन्य कृषकों को भी प्राकृतिक खेती करने के बारे में प्रेरित कर रहा हूँ ।


