जुन्नारदेव – छिंदवाड़ा जिले के जुन्नारदेव विकासखंड से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित नवेगांव की ग्राम पंचायत ताल खमरा में हर वर्ष देवउठनी ग्यारस के दिन एक अनूठा मेला आयोजित किया जाता है, जिसे देशभर में "भूतों का मेला" कहा जाता है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु दूर-दूर से माता मालन माई की पूजा-अर्चना और भूत-प्रेत बाधाओं से मुक्ति के लिए आते हैं। इस मेले में धार्मिकता, आस्था, और अंधविश्वास के अनेक पहलुओं को एक साथ देखा जा सकता है।
ओझा और पडिहार करते हैं प्रेत बाधाओं का समाधान
मेले के दौरान प्रेत बाधा से प्रभावित लोग अपनी मुसीबतों का समाधान पाने के लिए ओझाओं और पडिहारों से तांत्रिक अनुष्ठानों का सहारा लेते हैं। यहां पर प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्तियों को वटवृक्ष से धागों से बांधकर कील ठोकी जाती है ताकि भूत-प्रेत उनके शरीर को छोड़ दें। यह भी मान्यता है कि इस प्रक्रिया से भूत-प्रेत पेड़ में कैद हो जाते हैं। मूक जानवरों की बलि देने की परंपरा भी इस मेले में विद्यमान है, जो मन्नत पूरी करने और प्रेत आत्माओं से मुक्ति पाने के लिए की जाती है।
आस्था और अंधविश्वास का घालमेल
ताल खमरा के मेले में प्रेत बाधाओं को दूर करने के ये अनुष्ठान देखने में एक ओर आस्था का प्रतीक हैं, तो दूसरी ओर अंधविश्वास का प्रतिबिंब भी हैं। 21वीं सदी में, जहां विज्ञान के नए आयाम छूए जा रहे हैं, इस प्रकार के अनुष्ठानों में विश्वास करना एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। यह मेला इस बात का प्रमाण है कि आज भी ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में अंधविश्वास और आस्था का गहरा प्रभाव है, जहां परिजन अपने ही पीड़ितों को यातनाओं के माध्यम से भूत-प्रेत से मुक्त कराने का प्रयास करते हैं।
मालन माई की पूजा और चमत्कार
सैकड़ों वर्षों से इस मेले का आयोजन होता आ रहा है, और यहां मालन माई माता का विशेष स्थान है। विगत वर्षों में माता का एक मंदिर भी बनाया गया है, जहां भक्तगण अपनी आस्था और विश्वास के साथ पूजा-अर्चना करते हैं। माना जाता है कि मालन माई कई चमत्कार दिखाती हैं, और यहां आने वाले लोगों की प्रेत बाधाएं भी शांत हो जाती हैं।
तालाब के जल का महत्व
ताल खमरा में स्थित तालाब का जल भी खास माना जाता है। यहां मान्यता है कि इस तालाब में स्नान करने से प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है। तांत्रिक अनुष्ठानों के दौरान तालाब में स्नान अनिवार्य माना जाता है। स्नान के बाद, ओझा तंत्र-मंत्र के जरिए पीड़ित को शुद्ध करते हैं और प्रेत आत्माओं को पेड़ में कैद कर देते हैं।
मेला व्यवस्था में प्रशासन की भूमिका
हालांकि यह मेला प्रशासनिक रूप से पंजीकृत नहीं है, फिर भी स्थानीय प्रशासन द्वारा मेले के लिए व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जाती हैं। पार्किंग, दुकानें, और अन्य आवश्यकताओं के लिए शुल्क निर्धारित किए जाते हैं, और मंदिर समिति व ग्राम पंचायत व्यवस्था में सहयोग करती हैं।
अंधविश्वास और आस्था का मिश्रण
इस मेले में बड़ी संख्या में लोग अपनी मन्नतें पूरी करने और भूत-प्रेत बाधाओं से छुटकारा पाने के लिए आते हैं। यह मेला उन लोगों के लिए आस्था का केंद्र बन चुका है, जो अंधविश्वास के तहत पीड़ितों को कष्ट सहन कराकर भूत-प्रेत से मुक्ति की उम्मीद करते हैं।
कैसे होती है पूजा
छिंदवाड़ा और महाराष्ट्र के कई लोग इस मेले में आकर पहले तालाब में स्नान करते हैं और गीले कपड़ों में देवी की पूजा करते हैं। ढोल-नगाड़ों के साथ पीपल के पेड़ के नीचे प्रेत आत्माओं की पूजा कर मुर्गे और बकरे की बलि दी जाती है। यह क्षेत्र आदिवासी अंचल होने के कारण यहां के लोग अंधविश्वास के अधीन होकर इस प्रकार की पूजा-अर्चना करते हैं, और इसे आस्था का हिस्सा मानते हैं।
संक्षेप में, ताल खमरा का मेला – आस्था और अंधविश्वास के जाल में फंसा एक अद्वितीय मेला
यह मेला धार्मिक आस्था के साथ-साथ अंधविश्वास की पराकाष्ठा को भी प्रदर्शित करता है। लोगों का मानना है कि यहां मालन माई माता के आशीर्वाद से उनके कष्ट दूर होते हैं, लेकिन यह भी सच है कि यह मेला आधुनिकता और विज्ञान के बीच समाज में व्याप्त अंधविश्वास की जड़ों को भी उजागर करता है।

