उमरेठ (छिंदवाड़ा)।
छिंदवाड़ा जिले के उमरेठ में हर साल आयोजित होने वाला ऐतिहासिक पंचदिवसीय मेघनाद मेला शुक्रवार से शुरू होगा, जो 18 मार्च को समाप्त होगा। इसके बाद 19 मार्च को पारंपरिक रूप से रंग गुलाल और धुरेंडी खेली जाएगी।
अंग्रेजी शासनकाल से लग रहा ऐतिहासिक मेला
उमरेठ के नेहरू चौक स्थित मां निकुंबला देवी और खंडेरा बाबा मंदिर में यह मेला वर्षों से आयोजित होता आ रहा है। होलिका दहन के दो दिन बाद से शुरू होने वाला यह मेला छिंदवाड़ा जिले का सबसे प्राचीन और ऐतिहासिक मेला माना जाता है, जिसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र से हजारों श्रद्धालु इस मेले में हिस्सा लेने आते हैं। मान्यता है कि रावण पुत्र मेघनाद की आराध्य देवी मां निकुंबला आदिवासी समाज की कुल देवी हैं और खंडेरा बाबा में स्वयं मेघनाद का वास माना जाता है। श्रद्धालु यहां सच्चे मन से मांगी गई मन्नतों के पूरा होने की आस्था रखते हैं।
खंडेरा बाबा पर वीरों का अनुष्ठान
मेले के दौरान श्रद्धालु अपनी मन्नतों को पूरा करने के लिए अनोखी परंपरा निभाते हैं। खंडेरा बाबा की 20 फीट ऊँची संरचना पर एक विशेष रस्म निभाई जाती है, जिसमें "वीर" बनने वाले व्यक्ति को हवा में घुमाया जाता है। जो लोग वर्षभर अपनी समस्याओं के समाधान के लिए यहां मन्नत मांगते हैं, वे मन्नत पूरी होने पर यह कठिन अनुष्ठान करते हैं। उन्हें विशेष तरीके से तैयार कर, रस्सी से बाँधकर खंडेरा बाबा तक लाया जाता है। पूजा-अर्चना के बाद इन्हें औंधे मुंह कमर से बाँधकर हवा में घुमाया जाता है, जब तक कि उनके शरीर से "भार" उतर न जाए।
आज भी प्रचलित बलि प्रथा
यहां आज भी मुर्गे और बकरे की बलि देने की परंपरा प्रचलित है। श्रद्धालु मन्नत पूरी होने के बाद खंडेरा बाबा के समक्ष बलि चढ़ाते हैं। मुर्गे या बकरे का सिर भैरव देव के स्थान पर चढ़ाया जाता है, जबकि उसका बाकी मांस नगर के बाहर बने अस्थायी ठिकानों पर पकाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। मान्यता है कि इस प्रसाद का एक भी अंश घर नहीं ले जाया जाता।
नगर में उत्सव जैसा माहौल
मेले के दौरान उमरेठ नगर में उत्सव का माहौल रहता है। नगरवासियों के घरों में मेहमानों की भीड़ उमड़ पड़ती है। यहां तक कि इस अवसर पर विशेष रूप से बेटियों और जमाइयों को बुलाने की परंपरा है।
छठे दिन खेली जाती है धुरेंडी
जहां देशभर में होलिका दहन के अगले दिन धुरेंडी खेली जाती है, वहीं उमरेठ की परंपरा अनूठी है। यहां धुरेंडी और रंग गुलाल मेले के समाप्त होने के बाद, होलिका दहन के छठे दिन खेला जाता है।
अतिक्रमण और अव्यवस्थाओं से मेले पर संकट
खंडेरा बाबा की भूमि, जो कभी एक पटेल परिवार द्वारा दान में दी गई थी, अब अतिक्रमण की चपेट में आ चुकी है। दुकानों के लिए उचित स्थान नहीं मिलने के कारण व्यापारियों को सड़क किनारे ठेला लगाना पड़ता है। शासकीय मार्ग पर लगने वाली दुकानों से स्थानीय लोग अवैध वसूली भी करने लगे हैं। पहले ग्राम पंचायत मेले का ठेका देती थी, जिससे एक व्यवस्थित व्यवस्था बनी रहती थी, लेकिन अब यह प्रक्रिया बंद हो गई है, जिससे दुकानें कम होती जा रही हैं और मेले का आकार घट रहा है। यदि यही स्थिति रही, तो आने वाले समय में यह ऐतिहासिक मेला सिर्फ किताबों में ही रह जाएगा।
असामाजिक तत्वों पर रहेगी पुलिस की नजर
मेले के दौरान असामाजिक तत्वों द्वारा छेड़छाड़ और अनुचित गतिविधियों की घटनाएं सामने आती रही हैं, जिससे कई सम्मानित परिवार मेले में जाने से कतराने लगे हैं। इस बार पुलिस ऐसे तत्वों पर कड़ी नजर रखेगी, ताकि मेले में शांति और सुरक्षा बनी रहे।

