सच की आंखे न्युज उमरेठ, छिंदवाड़ा। उमरेठ क्षेत्र में लगातार हरे-भरे वृक्षों की कटाई की घटनाएं सामने आ रही हैं, लेकिन जिम्मेदार प्रशासन और वन विभाग अब तक खामोश नजर आ रहा है। बुधवार सुबह ग्राम करगांव में एक वर्षों पुराना बरगद का पेड़ काट दिया गया, जिससे न केवल ग्रामीणों की भावनाएं आहत हुईं, बल्कि एक बड़ा पर्यावरणीय संकट भी खड़ा हो गया।
ग्रामवासियों में रोष
गांव के बुजुर्गों के अनुसार यह बरगद का पेड़ कई दशकों से गांव की धरोहर के रूप में मौजूद था। गर्मियों में इसका घना छांव लोगों के लिए शरण स्थल बनता था। देवेंद्र जैन (निवासी, चारगांव) ने बताया, “यह पेड़ सिर्फ एक वृक्ष नहीं था, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत था। पेड़ काटने वालों पर कार्रवाई नहीं हुई तो यह सिलसिला नहीं रुकेगा।”
पूर्व में भी हो चुकी है कटाई
यह पहली घटना नहीं है। इससे पहले खमरा जेठू गांव में भी सड़क किनारे लगे पेड़ सुनियोजित तरीके से काटे गए। कुछ ही समय में वे पेड़ सूख गए। इन घटनाओं से यह आशंका और बढ़ जाती है कि किसी निजी स्वार्थ या अनधिकृत निर्माण कार्य के लिए पेड़ काटे जा रहे हैं।
प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत बिना अनुमति पेड़ काटना दंडनीय अपराध है। लेकिन इन नियमों का पालन न होना और प्रशासन की चुप्पी इन मामलों को बढ़ावा दे रही है। न ही अब तक कोई जांच हुई, न ही कोई रिपोर्ट दर्ज की गई है।
प्राकृतिक संतुलन पर खतरा
ऐसी अवैध कटाई न केवल हरियाली को समाप्त करती है, बल्कि क्षेत्र के तापमान में वृद्धि, वायु प्रदूषण, जलस्तर में गिरावट और जैव विविधता के विनाश का कारण भी बनती है। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में हर पेड़ का महत्व और अधिक बढ़ गया है।
पर्यावरण प्रेमियों की अपील
स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने जिला प्रशासन व वन विभाग से मांग की है कि—
संबंधित गांवों में पेड़ों की अवैध कटाई की उच्च स्तरीय जांच करवाई जाए।
दोषियों पर पर्यावरण संरक्षण कानून के अंतर्गत कार्रवाई हो।
क्षेत्र में पुनः वृक्षारोपण अभियान चलाया जाए।
अंतिम बात
हर एक पेड़ न केवल ऑक्सीजन देता है, बल्कि वह हमारी सांस्कृतिक और जैविक विरासत का प्रतीक होता है। यदि समय रहते इन कटाई की घटनाओं पर रोक नहीं लगाई गई, तो भविष्य में हम और हमारी आने वाली पीढ़ियां इसका खामियाजा भुगतेंगी।

