रिपोर्टर डॉक्टर संजीव चौहान
सिवनी/मध्यप्रदेश शासन की स्थानांतरण नीति पर सवाल खड़े करते हुए सिवनी जिले के बरघाट जनपद पंचायत में पदस्थ उपयंत्री श्याम सुंदर परिहार का मामला सुर्खियों में है। परिहार ने बीते 14 वर्षों से एक ही स्थान पर डेरा जमाए रखा है और जब शासन ने उनका तबादला आदेश जारी किया तो उन्होंने न्यायालय और पारिवारिक कारणों की आड़ लेकर उसे भी रुकवा दिया। यह कदम अब न केवल कर्मचारियों के बीच असंतोष का कारण बन रहा है बल्कि शासन की निष्पक्षता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।
*पारिवारिक संकट या नियमों की खिल्ली*
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने परिहार का स्थानांतरण टीकमगढ़ संभाग किया था। लेकिन परिहार ने अपनी वृद्ध मां की बीमारी और बच्चों की पढ़ाई का हवाला देते हुए हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। अदालत ने संवेदनशीलता के आधार पर पुनर्विचार का निर्देश दिया और शासन ने 15 सितंबर 2025 को तबादला आदेश निरस्त कर दिया। सवाल यह है कि क्या हर कर्मचारी अपने निजी कारणों का हवाला देकर शासन को झुका सकता है?
*बरघाट में 14 साल से जमे रहने पर उठे सवाल*
सरकारी स्थानांतरण नीति में स्पष्ट है कि तीन वर्ष से अधिक एक ही स्थान पर पदस्थापना नहीं होनी चाहिए। इसके बावजूद परिहार 13 जनवरी 2011 से लगातार बरघाट में ही पदस्थ हैं। तबादला आदेश का निरस्त होना यह साबित करता है कि नियम सिर्फ कागज़ पर हैं और चुनिंदा लोगों के लिए अलग व्यवस्था बन चुकी है।
न्यायालय का आदेश या शासन की मजबूरी
परिवारिक समस्याएँ हर कर्मचारी के जीवन में होती हैं। लेकिन यदि हर कोई इसी तर्क पर तबादला रुकवाने लगे तो शासन की नीति और प्रशासनिक व्यवस्था का औचित्य ही खत्म हो जाएगा। परिहार को राहत मिलने से यह संदेश गया है कि संवेदनशीलता के नाम पर नियमों को बेमानी बना दिया गया है।
कर्मचारी वर्ग में बढ़ता असंतोष
जिले के कई अधिकारी-कर्मचारी इस निर्णय को लेकर नाराजगी जता रहे हैं। उनका कहना है कि हर 3-4 साल पर हमें अपने परिवार को छोड़कर स्थानांतरण झेलना पड़ता है, लेकिन परिहार जैसे लोग एक ही स्थान पर सालों तक जमे रहते हैं। यह भेदभाव न केवल अन्यायपूर्ण है बल्कि शासन की विश्वसनीयता पर भी चोट करता है।
मामले से जुड़े बड़े प्रश्न:
14 वर्षों से बरघाट में पदस्थ रहने के बावजूद तबादला निरस्त क्यों स्थानांतरण नीति में 3 वर्ष की सीमा तय होने पर भी अपवाद क्यों बनाया गया?क्या संवेदनशीलता के नाम पर बाकी कर्मचारियों के साथ अन्याय नहीं?क्या शासन की नीतियाँ कुछ चुनिंदा लोगों की सुविधा के लिए हैं?
*निष्कर्ष: नियमों की धज्जियाँ और पक्षपात का प्रमाण*
श्याम सुंदर परिहार का मामला दर्शाता है कि संवेदना और पारिवारिक कारणों की आड़ लेकर नियमों को तोड़ा जा सकता है।
शासन का यह निर्णय न केवल स्थानांतरण नीति का मज़ाक उड़ाता है बल्कि यह भी साबित करता है कि “जो दबाव बना ले, वही राहत पा ले।
अब यह मामला जिले और राज्य में कर्मचारियों व आम जनता के बीच न्याय बनाम नियम, संवेदना बनाम समानता की गरमागरम बहस को जन्म दे चुका है।

