आदिवासी छात्रावास में मासूमों की जिंदगी से खिलवाड़, अधीक्षक पर गंभीर आरोप
हर्रई (मध्य प्रदेश)। आदिवासी बालक उत्कृष्ट छात्रावास हर्रई में बच्चों की सुरक्षा और अधिकारों से जुड़ा एक गंभीर मामला सामने आया है। छात्रावास अधीक्षक काशीराम डेहरिया का एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें वे बच्चों को छड़ी के दबाव में छात्रावास की छत पर चढ़ाकर सफाई और अन्य काम करवाते नजर आ रहे हैं। इस घटना ने छात्रावास प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सूत्रों के मुताबिक, अधीक्षक डेहरिया लंबे समय से बच्चों से अपनी निजी सेवा और छोटे-मोटे काम कराते रहे हैं। आरोप है कि वे बच्चों को छड़ी दिखाकर डराते हैं और मजबूरन खतरनाक काम करवाते हैं। इस दौरान बच्चों की सुरक्षा की अनदेखी की जाती है, जिससे कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है।
कानून के जानकारों का कहना है कि यह घटना न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है बल्कि बाल श्रम निषेध अधिनियम, 1986 और किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के प्रावधानों का भी सीधा उल्लंघन है। इन कानूनों के तहत बच्चों को किसी भी खतरनाक या शारीरिक-मानसिक पीड़ा पहुँचाने वाले काम में लगाना अपराध है।
प्रदेश में इससे पहले भी कई बार आदिवासी छात्रावासों से दुर्व्यवहार, अव्यवस्था और बच्चों की मौत जैसी घटनाएँ सामने आ चुकी हैं। बावजूद इसके, जिम्मेदार विभाग की लापरवाही और संरक्षण में ऐसी घटनाएँ रुकने का नाम नहीं ले रही हैं।
इस मामले पर जब अधीक्षक काशीराम डेहरिया से संपर्क करने की कोशिश की गई तो उन्होंने फोन नहीं लगा किया। वहीं,
नियम क्या कहते हैं?
किशोर न्याय अधिनियम, 2015: बच्चों को शारीरिक-मानसिक पीड़ा देने पर दंड का प्रावधान।
बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986: 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक कामों में लगाने पर रोक।
मध्य प्रदेश आदिवासी छात्रावास नियम: अधीक्षक का प्रमुख कर्तव्य बच्चों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करना है।
बच्चों की सुरक्षा से जुड़े इस मामले ने एक बार फिर प्रदेश के छात्रावासों की व्यवस्था और अधिकारियों की जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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