जुन्नारदेव। जुन्नारदेव जनपद पंचायत के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत पर्वतघोघरी आजकल पूरी तरह भगवान भरोसे चल रही है। सरकारी योजनाएं भले ही ग्रामीण इलाकों तक पहुंचाने के लिए बनाई जाती हों, लेकिन यहां उनका हाल ऐसा है जैसे रेगिस्तान में पानी — पहुँचते-पहुँचते सूख जाता है।
ग्रामीणों का कहना है कि पंचायत सचिव महीने में सिर्फ 3–4 बार ही पंचायत कार्यालय दर्शन देने आते हैं। ज़रूरत पड़ने पर लोग सचिव साहब को ढूंढते रह जाते हैं, लेकिन उनका “आना-जाना सब मर्जी का” फार्मूला चलता है।
गांव वाले बताते हैं, “काम मुख्य सचिव का है, पर सहायक सचिव से उम्मीद की जा रही है। नतीजा? आधा-अधूरा काम और पूरी टेंशन हमारी।” पर्वतघोघरी पंचायत जनपद का सबसे आउट क्षेत्र होने के कारण यहां अधिकारियों का ध्यान कम और कर्मचारियों का कोई नियंत्रण नहीं है।
नतीजा यह है कि सचिव साहब आते हैं अपनी मर्जी से और चले जाते हैं अपनी मर्जी से। ग्रामीणों में सवाल है — कब तक पंचायत भगवान भरोसे चलेगी और कब तक उनकी आवाज़ ऊपरी अफसरों तक पहुंचेगी?

